अब जाग ज़रा मेरे मौला...
है रात घनी, फैला है तम,
बिखरा जाता अब मेरा दम।
हाथ बढ़ा , तू थाम ज़रा,
है चोट बड़ी, आंसू हैं कम।
अब जाग.....
सदियाँ बीत गई हो जैसे,
मेरे होठों को मुस्काये।
अरसा गुजर गया हो जैसे,
किसी को दिल का हाल सुनाये।
अब जाग ......
है चाह बड़ी दीवानेपन की,
तेरी ही अब आस बची है।
दुनिया के झोंकों से लरज कर,
एक तेरी ही प्यास बची हैं।
अब जाग .......
है कसम खुदा, अब हाथ बढ़ा,
तू देर न कर, अब जाग ज़रा।
दे सफर वही जो तुझको पाऊं,
दीवाना बन , लूँ नाम तेरा।
अब जाग जरा मेरे मौला....
These blogs r fondest of my words, closest to my bosom, deeply enriched with the outcomes of an introspective sojourn.... The panoramic view of sinusoidal life and its adornments ....
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5 comments:
mukarrar mukarrar
i know your creative ability(ankur kavi).
yaad hai "Mrigank".
bilkul yaad hai bhai.... apne ateet ko kaafi sahej kar rakhaa hai, sab kuch usi kaa diya toh hai.... mast ho na??
u rock dev....rock n roll
dev, u r really good at the reckoning of your soul, keep it up
and guess who the anonymous is. shishya
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