यह रोग किसको मैं बताऊँ,
दफन आंसू कैसे दिखाऊं।
ला इलाजी पे हूँ हंसता,
हाल-ऐ-दिल कैसे बताऊँ।
एक नाम गोया क्यूँ लिया,
कुछ इश्क की तौहीन की।
एक आरजू में डूब कर ,
क्यूँ आवारगी हसीन की ।
साँस का मालिक भी कहता,
इश्क अनजानी दवा है।
रूह तक तो यह खुदा सा,
नाम में यह एक सजा है।
यह सजा आंखों की जीनत,
आशिक की है यह बंदगी।
ना दवा कोई असर की,
यह रोग सी है दिल्लगी।
These blogs r fondest of my words, closest to my bosom, deeply enriched with the outcomes of an introspective sojourn.... The panoramic view of sinusoidal life and its adornments ....
Friday, September 12, 2008
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मेरी माँ
भोजन टेबल पर रखा जा चुका था। नजर उठा कर देखा तो माँ सामने खड़ी थी। सूती साड़ी में लिपटी वह सादगी की प्रतिमूर्ति , चेहरा सर्द बर्फ की तरह शां...
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My breath was uneven,dry throat,shivering hands,sagging morale and i was a living corpse or a dying man. Alone all alone in the vastness of ...
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3 comments:
nice
bindaaaaaaaasssssssss boliye " bliss" main kya bolna tha aapko hmare hote hue aap ye baat pucho acha nahi lagaaaaaaaa. aage aapki ichchaaaaaaaaa.
waah waah... aashiq ke dard ko sabdon mein bandha hai... baba... ilaz bhi bata dete.. paanchvi manzil.. jai ho jai ho :D
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