अविरल,निश्छल,स्नेहिल स्वप्न सा ,
जीवन पथ यह प्राण सेतु का।
कल कल बहते समय सिंधु पर ,
पथिक कहो तुमने क्या देखा ?
जगते -सोते और सदा सुषुप्त ,
तन्द्रा देखी , जागृति को देखा।
आँख खोलते अलसाये जन ,
अलसाते से नायक देखा।
कृषक, मेघ और धरती का ,
पुष्प पल्लवित आँगन देखा।
और बाड का अँधेरे में ,
फसलों का चरना भी देखा।
श्रम का सृजन तिरस्कृत होता,
बाजारों का सजना देखा।
भाव , मूल्य और आदर्शों का,
बीच हाट में रोना देखा।
सत्य सदा एकाकी ठहरा ,
और झूठ का मेला देखा।
जीवन तेरे पग पग हमने ,
दिन दोपहरी अँधेरा देखा।
जीवन पथ यह प्राण सेतु का।
कल कल बहते समय सिंधु पर ,
पथिक कहो तुमने क्या देखा ?
जगते -सोते और सदा सुषुप्त ,
तन्द्रा देखी , जागृति को देखा।
आँख खोलते अलसाये जन ,
अलसाते से नायक देखा।
कृषक, मेघ और धरती का ,
पुष्प पल्लवित आँगन देखा।
और बाड का अँधेरे में ,
फसलों का चरना भी देखा।
श्रम का सृजन तिरस्कृत होता,
बाजारों का सजना देखा।
भाव , मूल्य और आदर्शों का,
बीच हाट में रोना देखा।
सत्य सदा एकाकी ठहरा ,
और झूठ का मेला देखा।
जीवन तेरे पग पग हमने ,
दिन दोपहरी अँधेरा देखा।
1 comment:
वाह👌
गौरीशंकर शर्मा
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