Sunday, December 9, 2018

Winter

निर्निमेष चक्षु चातक बन ,
चंद्र कला की बाट निहारें। 
शीत बिंदु और धवल चन्द्रिका,
स्मृतियों के कुंतल सुलझाएं। 

श्वेत - श्याम और हरित पीत सब,
जीवन के कितने ही मधुरस। 
सहज विहँसते पृष्ठ काल में
अलि, भावों की रसना ने पाए। 

ह्रदय ,आत्म है प्रतिपल सिंचित,
सुरभि सुखद प्रेम मय वह स्मित।
प्रेम केतु और मिलन राहु सा ,
परिग्रह का क्या अमिय पिया है। 

अगम अतीत हुए कितने ही ,
मधुर प्रतीत हुए उतने ही।
स्वर तेरा संगीत हुआ है ,
जीवन से नव प्रीत हुआ है।  

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