Monday, November 9, 2020

छोटी सी आशा

पतवार दो, नाव दो और नदी की धार दो।
बढ़ने दो, बहने दो, लहरों से कहने दो।
छोटे से दिल में है एक छोटी सी आशा,
उस किनारे के सूरज को मिल लूँ जरा सा।



No comments:

मेरी माँ

भोजन टेबल पर रखा जा चुका था। नजर उठा कर देखा तो माँ सामने खड़ी थी। सूती साड़ी में लिपटी वह सादगी की प्रतिमूर्ति , चेहरा सर्द बर्फ की तरह शां...