उनींदी रात में जब पूनम की चांदनी हो,
सर्द के आँचल में कोई आग लगी सी हो।
सितारे चिंगारियों से जल के जो बुझते हों,
बिखरे हुए मन के जो जज्बात सुलगते हों।
वही रात खिड़कियों पे आवाज़ लगाती है,
एक धुंध अँधेरे का और चाँद का बाती है।
बीते हुए अफसानों की बारात सजी है,
सपने भी चल रहे हैं और नींद नहीं है।
वक़्त कभी खुल कर किसी का नहीं होता,
कागज़ के पैमानों में पानी नहीं टिकता।
ख़ामोशी अब सिरहाने से शोर मचाती है,
यह रात किसी भोर से अब आँख चुराती है।
No comments:
Post a Comment