रस है उस रसना में,
जिसने राग तुम्हारा गाया।
बेलीक, खरी बातों को,
तुमने तो नीरस पाया।
आवर्त राग के शिखर जोड़,
तुमने स्वर महल बनाए।
जो नहीं तुम्हारे मूल्य बिंदु,
उनके भी मोल चुकाए।
भावों के अगनित बिचौलियों ने,
जाने क्या क्या तुमको बेचा।
मोहित से तुम डोल रहे,
सच को न कभी तुमने सोचा।
पद, प्रभाव, धनबल वर्षा में,
लोट लोट सुख तुमने लूटा
साधु साधु, करतल गर्जन में,
मार्ग तुम्हारा कब का छूटा।
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