Friday, August 11, 2023

सत्य, सनातन लीला करने तब स्वयं चले

षड्यंत्रों के यंत्र मन्त्र में डूबी धरती जब,

त्राहि त्राहि हो पीड़ित सी सकुचाती है।

सहज, सरल, सापेक्ष सत्य की रक्षा को,

परम शक्ति जब चिंतित हो अकुलाती है।


दुष्ट, अधम और पापी जब मदमस्त हुए,

छोटे 2 इंद्र सभी, टूट बिखर निस्तेज हुए।

महासमर में पाप विहँसता, पुण्य तड़पता,

धर्म ध्वजा जब आहत, कुंठा में मौन हुए।


सत्य, सनातन लीला करने तब स्वयं चले,

ले रूप कृष्ण का लीलाधर तब स्वयं बढे।

अन्यायी को गति, भक्त को मुक्ति दिया,

जगत गुरु ने महि मंडल कल्याण किया।



No comments:

मेरी माँ

भोजन टेबल पर रखा जा चुका था। नजर उठा कर देखा तो माँ सामने खड़ी थी। सूती साड़ी में लिपटी वह सादगी की प्रतिमूर्ति , चेहरा सर्द बर्फ की तरह शां...