Saturday, June 13, 2020

विहान

प्रारम्भ ही है जीवन रहस्य ! घोर तिमिर का अंत सुनिश्चित, नत भावों की सीमा निश्चित। सीमित है जग में विनाश यह, पथ विहान का सदा प्रतीक्षित। सृजन बिंदु जब आगे बढ़ते, बढ़ विनाश की छाती दलते। लुंठित कुंठित से युग धारा को, सहज सफल रंगों से भरते। -विहान के सूर्य को समर्पित।


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मेरी माँ

भोजन टेबल पर रखा जा चुका था। नजर उठा कर देखा तो माँ सामने खड़ी थी। सूती साड़ी में लिपटी वह सादगी की प्रतिमूर्ति , चेहरा सर्द बर्फ की तरह शां...