Saturday, June 13, 2020

दरख्तों की जड़ें

एक रात ठंडी, जागती सी बीत जाती है, धुंधलके सुबहों के बीते न बिताये जाते। उसने चट्टान बन तूफानों से बस्ती बचाई, उसे अपनी दरख्तों की जड़ें अब तोड़ती हैं।


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मेरी माँ

भोजन टेबल पर रखा जा चुका था। नजर उठा कर देखा तो माँ सामने खड़ी थी। सूती साड़ी में लिपटी वह सादगी की प्रतिमूर्ति , चेहरा सर्द बर्फ की तरह शां...