Thursday, August 27, 2020

लंका

लंका जल रही थी धू धू

मैं अकिंचन, अविश्वास में डूबा,
अपनी लघुता में कुछ ढूंढ रहा था।
मैं ही हूँ, या मेरे अंदर कुछ और,
साँसों में श्री राम नाम चल रहा था।



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मेरी माँ

भोजन टेबल पर रखा जा चुका था। नजर उठा कर देखा तो माँ सामने खड़ी थी। सूती साड़ी में लिपटी वह सादगी की प्रतिमूर्ति , चेहरा सर्द बर्फ की तरह शां...