सफर कहीं अब ले चल तू.
बेजान कदम , धड़कन मद्धम,
अनजान खुदा, अनजान सनम।
रास्ता रूठा, गठरी छूटी,
दिन झूठे , रातें भी झूठी।
सफर कहीं.....
सालों बरसी , सूखी आंखें,
जन्मों तरसी, प्यासी बाहें।
अब मेरे खुदा, तू जाग जरा,
है सफर कठिन, भटकी राहें.
सफर कहीं....
न चाह कोई , न प्यास कोई,
अब वस्ल-ऐ-नफस भी यहाँ नही।
बस एक दीवाना मेरा दिल,
कहता है एक फरियाद यहीं.
सफर कहीं....
किसको भूलूँ, याद आऊँ किसे,
हर जगह मेरा मैं बिखरा है।
बिखरे साँसों के इन मनको पर,
अल्लाह तेरा ही कुछ फिकरा है.
सफर कहीं ......
These blogs r fondest of my words, closest to my bosom, deeply enriched with the outcomes of an introspective sojourn.... The panoramic view of sinusoidal life and its adornments ....
Saturday, May 24, 2008
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