चाहत के दो फूल खिला कर ,
दर्द नशेमन मिलता है।
गुंचा एक प्यार का देखो ,
कांटो का गुलशन देता है।
हाय जहाँ कुछ फूल कभी थे,
आज बिछे अंगारे हैं।
जहाँ जिगर का लहू बहा था,
आज सिसकती आहें हैं।
साँसों में जो एक कयास था,
उसको रोज दफन करता हूँ।
क्यों मुझको जीने कहते हो,
बरसों से जीता आया हूँ।
अब तौ कुछ अरमा हैं ऐसे,
सागर की लहरें हो जैसे ।
पल को बनती ,पल को बिखरती,
साहिल से मिलना हो ऐसे.
These blogs r fondest of my words, closest to my bosom, deeply enriched with the outcomes of an introspective sojourn.... The panoramic view of sinusoidal life and its adornments ....
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1 comment:
kaha se dhundte ho aise sabd .dard hii dard or kuch nahi hae in sabdo mae.nice composition.
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