उस योगी को अब माया और जीव दोनों दिख रहे थे। किसी पात्र में पानी पर तेल की परत जैसे, पहले अधिकतर यह पात्र आंदोलित दिखता। परन्तु इस बार उसकी दृष्टि स्पष्ट थी, पात्र चाह कर भी आंदोलित नहीं हो पा रहा था। इतना स्पष्ट उसने पहली बार देखा था। ऐसा लगता था उसके ह्रदय को बीसियों तीरों ने बिंध दिया हो। फिर भी वह इस दृष्टि में आनंदित था, इस आनंद में कोई ओज नहीं था, कोई भार नहीं था, कोई प्रेरणा नहीं थी और कोई आह्लाद नहीं था। एक सपाट आनंद। तय करना कठिन था कि यह जागृति थी या सुषुप्ति। परन्तु इस स्थायी होती दृष्टि के साथ आगे की यात्रा रोचक होने वाली थी .......
These blogs r fondest of my words, closest to my bosom, deeply enriched with the outcomes of an introspective sojourn.... The panoramic view of sinusoidal life and its adornments ....
Friday, September 8, 2023
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मेरी माँ
भोजन टेबल पर रखा जा चुका था। नजर उठा कर देखा तो माँ सामने खड़ी थी। सूती साड़ी में लिपटी वह सादगी की प्रतिमूर्ति , चेहरा सर्द बर्फ की तरह शां...
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My breath was uneven,dry throat,shivering hands,sagging morale and i was a living corpse or a dying man. Alone all alone in the vastness of ...
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Debate held at Aryabhatta Hall , IIM , Ranchi. Can Corruption be erased or reduced drastically ?? Respected Jury and esteemed thoug...
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