जिसने हारे ह्रदय बिंदु में
कोई द्वंद्व सजग हो।
जिसने मानस की वीथी में
पाये आह्लाद सजल हो।
जिसके अंतर में बहती हों
करुण पुण्य सलिलायें।
वह विराट जिसका धरती पर
देन लेन चुकता हो।
स्वयं सिद्धि में जीता हो,
स्वयं सिद्ध मरता हो।
जिसकी वाणी में सत्य लिपट
गौरव अनुभव करता हो।
जो कल्याण मन्त्र में झंकृत
रागों को गाता हो।
उस से पूछो इस जग में
नवरस कैसे हम पाएं।
कैसे जीवन के पक्षों में,
हम चिर प्रकाश हो जाएँ।
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