Friday, July 25, 2008

The marks......

हाँ अजीब सी येह कहानी है,
लगती मेरी जिंदगानी है।
एक ख्वाब का मलाल कुछ,
कुछ आग सा येह पानी हैं।

मिल गए कुछ खो गए,
अरमान जगे कब सो गए।
अब इस कतार-ऐ-पलक पे,
कुछ शबनमी मंजर हुए।

हंस पडा मेरा मुकद्दर,
रह गए कुछ चोट अन्दर।
घाव कब के मिट चुके जो,
रह गए एक दाग बन कर।

हाँ अजीब सी ......

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