Sunday, July 13, 2008

Passionate peaks..........

कौन कहता है तुम्हे याद नही आऊंगा
दिन तोह दिन है , तुम्हे रात भी जगाऊंगा.

सिलवटें हाथों की सिमट के रह जाती हैं,
अबकी मिल जाओ तो फ़िर दूर नही जाऊँगा.

हाथ में हाथ लिए शाम गुजर जाती हैं,
अबकी होठों के भी कुछ खेल दिखा जाऊँगा.

तुमसे मिलते ही मेरा वक्त ठहर जाता हैं,
जाने कब शाम की सरहद से निकल पाउँगा.

मत कहो आज मेरा कत्ल हुआ जाता हैं,
देख कर भी उसे आँखों में बसा जाऊँगा।

No comments:

मेरी माँ

भोजन टेबल पर रखा जा चुका था। नजर उठा कर देखा तो माँ सामने खड़ी थी। सूती साड़ी में लिपटी वह सादगी की प्रतिमूर्ति , चेहरा सर्द बर्फ की तरह शां...