Thursday, July 31, 2008

The predicament.......

तजुर्बों से सीखी थी हमने जो बातें,
रेत पे लिखे उन आँधियों की जो रातें।

सब मिट रहा ,कुछ नया हो चला हूँ,
दयार-ऐ-दस्त में भटक सा गया हूँ।

पुकारा किए, एक नाम था जो सहारा,
हुई ख़ुद में गुम कश्ती,और वो किनारा।

घनी काली रातें यह क्या गीत गाती,
रौशनी का दिया कब से रहा बिन बाती।

एक आस का साकी,और ख्वाबों के प्याले,
सौंपू कहाँ ख़ुद को, किस खुदा के हवाले??

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