Thursday, October 29, 2020

दीपक

मैं तम की कालिमा में तड़पता था, ह्रदय भर अंधकार पर बिगड़ता था। प्रकृति के नियमों को कोसता था, बनाया अन्धकार क्यों सोचता था ! थके हारे मैंने एक दीपक जलाया, तम से लड़ने का एक शस्त्र बनाया। देखते ही देखते, कुछ लोग जुड़ गए, मेरे गाँव में अँधेरे के पाँव थम गए।

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मेरी माँ

भोजन टेबल पर रखा जा चुका था। नजर उठा कर देखा तो माँ सामने खड़ी थी। सूती साड़ी में लिपटी वह सादगी की प्रतिमूर्ति , चेहरा सर्द बर्फ की तरह शां...