Sunday, October 18, 2020

अस्तित्व

प्रति पल पिघल रहा है,
अस्तित्व का स्वरुप।
कहीं शक्ति का भण्डार
कहीं दरिद्रता विद्रूप।
जीवन समय का यज्ञ,
समिधा बहुत है थोड़े।
प्रति पल अतीत होते,
जो क्षण अनंत से तोड़े।



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