These blogs r fondest of my words, closest to my bosom, deeply enriched with the outcomes of an introspective sojourn.... The panoramic view of sinusoidal life and its adornments ....
Monday, December 28, 2020
उड़ान
किनारे
किनारे पूछते हैं - नाविक तुम्हें मंज़िल मिल गयी क्या ? तट के समीप की तटस्थता कब तक ? कहाँ है तुम्हारी नाव या फिर क्यों नहीं जाते तुम अपने गाँव ?
भाव, अभाव, प्रभाव
Monday, November 16, 2020
एक वह निमेष
वह एक पल, एक वह निमेष,
जिसमें दिख जाते सकल क्लेश।
दिख जाता जिसमे कर्म सकल,
दिखते जिसमें प्रारब्ध अटल।
जब भाव,प्रभाव, स्वभाव विफल,
जब लहराता हो काल सबल।
जब तुलता हो जीवन मृत्यु प्रबल,
जिस पल में हों सिद्धांत सकल।
दीप जलाओ
बुझते हृदयों में राग रंग के दीप जलाओ,
आशाओं की संध्या में तुम दीप जलाओ।
दीप जलाओ, मानव का अन्तः कहता है,
तिमिर क्षितिज पर देखो, दीया जलता है।
#HappyDiwali #HappyDiwali2020
pc- Internet
भोजन एक प्रतियोगिता
जीव जंतु के लिए एक आवश्यकता है,
परन्तु मानव के लिए भोजन एक प्रतियोगिता है।
हमारी भूख शारीरिक है, स्पष्ट है, सरल है,
मानव की बड़ी भूख उसका दिमाग है, उसका डर है।
वह घेरता है, बटोरता है, जी भर लूटता है,
और कहते नहीं हिचकता कि वह सामाजिक जंतु है।
Monday, November 9, 2020
स्तंभ
पल्लवन
मरकट
माँ !
घोसला
छोटी सी आशा
Thursday, October 29, 2020
माता कल्याण करो।
माँ ! उद्धार करो।
माता कल्याण करो, शक्ति, भक्ति, नव तेज, विश्व नवल, नव आशा, नव नव सब निर्माण करो। माता कल्याण करो। अंत करो आतंक, दुष्ट का निश्चय ही संहार करो। माता ! श्रांत, क्लांत से नर नारी हैं, नव ऊर्जा का संचार करो। माता कल्याण करो। फोटो - मित्र जॉयदीप पालदीपक
मैं तम की कालिमा में तड़पता था, ह्रदय भर अंधकार पर बिगड़ता था। प्रकृति के नियमों को कोसता था, बनाया अन्धकार क्यों सोचता था ! थके हारे मैंने एक दीपक जलाया, तम से लड़ने का एक शस्त्र बनाया। देखते ही देखते, कुछ लोग जुड़ गए, मेरे गाँव में अँधेरे के पाँव थम गए।
Saturday, October 24, 2020
मछलियों की उम्र
Thursday, October 22, 2020
मेरा श्रम
हर्ष का श्रृंगार
Sunday, October 18, 2020
Tuesday, October 6, 2020
तुझे ढूंढते हैं हर नज़र
तुझे ढूंढते हैं हर नज़र
ऐ मेरे शहर ऐ मेरे शहर
वो जो छिप गया वो सुकून था
वो जो दिख रहा वो नसीब है।
मेरी हसरतों की न फ़िक्र कर,
अब सवाल उठते हैं वजूद पर।
तू जख्म की न कोई बात कर,
कोई कील ला ये सलीब है।
मेरा मैं बिखर के सब हुआ ,
क्या अजब हुआ, क्या गजब हुआ।
तुझे ढूंढते हैं हर नज़र
ऐ मेरे शहर ऐ मेरे शहर
क्षितिज
चलो यह बस्ते, यह बोझ फेंकते हैं,
दौड़ कर क्षितिज से कुछ पूछते हैं। आशा की तूलिका में रंग नए लपेटे, जीवन सूर्य को सुनहला कर देते हैं।सीख
सीख सको,सीखो वृक्षों से,
जड़ें बाँध कर उठ जाना। नदिया की धारा से सीखो, मीलों मील चले जाना। सीखो नभ के तारागण से, अनुशासन में बंध जीना। सीखो शिक्षक की कक्षा से, दो दो पीढ़ी को गढ़ जाना। शिक्षक दिवस की शुभकामनायें।उत्सर्ग
अब तिमिर को लांघ सूरज आ चुका है,
गहरी रात
देखो, आज की रात कितनी गहरी है,
औ' इसके साये थोड़े और भी संजीदा। हवा में पोशीदा सा एक कातिल है, देखो, सुबह किसको जगाती है ज़िंदा।पंख पूरे फैलाओ
पंख पूरे फैलाओ
जितना संभव हो, उतना ऊंचे जाओ नापो गगन को, विराट अम्बर को। दृष्टि भू पर बनाये रखना जो साक्षात् है उसे अपनाये रखना। सम्भावना की उड़ान में यथार्थ को बचाये रखना। पंख पूरे फैलाओसुबह अब आ चुकी है
हाँ। सुबह अब आ चुकी है।
धवल कांति गहरी निशा को देखो दूर करती जा रही है। किसी यज्ञ की पूर्णाहुति सा खिल रहे हैं पुष्प, हर्ष मानो कलरवों में हो रहा चहुओर है।उलझन
दुनिया मकड़ जाल ही है,
और इंसान एक मकड़ा। अपने हिस्से का बुनता, और बड़े जाल से जकड़ा। उलझन के धागे हैं, जालों में जाले हैं, बंधन है,जकड़न है,तृष्णा है तृप्ति है। मोह है,माया है, भ्रम की जो छाया है, जीने को,बढ़ने को,बढ़ के लपकने को, धन,बल और यश का जाल बनाया है।उम्मीद
आदमी के पाँव जब से थोड़े ठिठके हैं,
उस बगीचे में नए उम्मीद जन्मे हैं।
तितलियों की पीढ़ियों को पंख निकले हैं,
यह चूल्हा ज़िन्दगी का
यह चूल्हा ज़िन्दगी का,
सोच जलाये दिमाग के चूल्हे में, वक़्त, रोटियों से गोल पकाये हैं। अनुभव के अंगारे से जलती आंच, कभी मद्धम कभी तेज सुलगती है।Saturday, September 5, 2020
सीखो
आशा की तूलिका
चलो यह बस्ते, यह बोझ फेंकते हैं,
छू कर क्षितिज से कुछ कुछ पूछते हैं।
आशा की तूलिका में रंग नए लपेटे,
जीवन पटल को सुनहला कर देते हैं।
Tuesday, September 1, 2020
नन्हीं सी नैया
पथिक राष्ट्र का
आसेतु हिमाचल
अविरल, अविचल
ग्राम - नगर - गिरि
वन वन निश्छल।
पथिक राष्ट्र का बढ़ता
अनथक , उज्जवल।
सर्व समर्पित समय वेदि पर
तन,मन, धन और जीवन प्रज्वल।
Thursday, August 27, 2020
यह गाँव है बाबू।
यह गाँव है बाबू।
मेरी माँ
भोजन टेबल पर रखा जा चुका था। नजर उठा कर देखा तो माँ सामने खड़ी थी। सूती साड़ी में लिपटी वह सादगी की प्रतिमूर्ति , चेहरा सर्द बर्फ की तरह शां...
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My breath was uneven,dry throat,shivering hands,sagging morale and i was a living corpse or a dying man. Alone all alone in the vastness of ...
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Debate held at Aryabhatta Hall , IIM , Ranchi. Can Corruption be erased or reduced drastically ?? Respected Jury and esteemed thoug...
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भोजन टेबल पर रखा जा चुका था। नजर उठा कर देखा तो माँ सामने खड़ी थी। सूती साड़ी में लिपटी वह सादगी की प्रतिमूर्ति , चेहरा सर्द बर्फ की तरह शां...