Monday, July 13, 2020

बेखुदी ....

एक धूप कलेजे की, एक छाँव सी मदहोशी, इस शहर ए इंसान में कोई अपना नहीं होता। बेखुदी का कोई वक़्त, कोई इल्म नहीं होता, कोई जगह नहीं होती, कोई शहर नहीं होता।


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मेरी माँ

भोजन टेबल पर रखा जा चुका था। नजर उठा कर देखा तो माँ सामने खड़ी थी। सूती साड़ी में लिपटी वह सादगी की प्रतिमूर्ति , चेहरा सर्द बर्फ की तरह शां...