कभी कभी बरस लिया करो !
प्रेम, अभिलाषा, लिप्सा, उन्माद, आवेग, कुंठा, उत्कंठा
सभी को समय समय पर बहने दिया करो।
तुम उम्मीदों, अपेक्षाओं के श्मशान या कारागृह तो नहीं,
जहाँ से किसी भाव की मुक्ति संभव ही नहीं !
टूटने दो धैर्य के बांधों को कभी, मिलने दो बिंदु को सागर से,
उसकी भी तपस्या, पूर्णता को तरसती है।
स्वागत करो धरती पर गिरती हर बूँद का, उसकी मुक्ति का,
उसे भी अधिकार है नव यात्रा का, नव जीवन का।
कभी कभी बरस लिया करो !
PC- Dr Nitish Priyadarshi
प्रेम, अभिलाषा, लिप्सा, उन्माद, आवेग, कुंठा, उत्कंठा
सभी को समय समय पर बहने दिया करो।
तुम उम्मीदों, अपेक्षाओं के श्मशान या कारागृह तो नहीं,
जहाँ से किसी भाव की मुक्ति संभव ही नहीं !
टूटने दो धैर्य के बांधों को कभी, मिलने दो बिंदु को सागर से,
उसकी भी तपस्या, पूर्णता को तरसती है।
स्वागत करो धरती पर गिरती हर बूँद का, उसकी मुक्ति का,
उसे भी अधिकार है नव यात्रा का, नव जीवन का।
कभी कभी बरस लिया करो !
PC- Dr Nitish Priyadarshi
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