Wednesday, July 29, 2020

पुष्प

कंटक वन में पुष्प पल्लवित,
अभिनव रंगों में झूम रहा था।
धूप घाम आंधी सह कर भी,
जीवन मधुरस मैं लुटा रहा था।

थोड़े विषाद थे, थोड़े से हर्ष,
छोटे जीवन का बड़ा उत्कर्ष।
मैं प्रतिपल युग को बाँट रहा,
अभिनव सुगंध,अभिनव विमर्श।

PC - Capt Sushil Kumar



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