चुप रहो बाबू, बिहार में बहार है,
न आर न पार, सब मझधार है।
चारों बगल यहाँ नदिया का धार है,
पानी के कैंची से कटा घर बार है।
गंगा आ कोसी में बढ़ रहा ज्वार है,
आतम उदास यहां जिनगी पहार है।
करेजा के टुकड़ा को कल से बुखार है,
सुनते हैं डॉक्टर करोना से बीमार है।
डूबत के तिनका नहीं, लाठी के जुगाड़ है,
अबकी बिहार में सचहु बहार है।
न आर न पार, सब मझधार है।
चारों बगल यहाँ नदिया का धार है,
पानी के कैंची से कटा घर बार है।
गंगा आ कोसी में बढ़ रहा ज्वार है,
आतम उदास यहां जिनगी पहार है।
करेजा के टुकड़ा को कल से बुखार है,
सुनते हैं डॉक्टर करोना से बीमार है।
डूबत के तिनका नहीं, लाठी के जुगाड़ है,
अबकी बिहार में सचहु बहार है।
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