Monday, July 20, 2020

गति ही जीवन

चलना ही जीवन है, गति ही जीवन रेखा
प्रत्याशा के अंकुर को तुमने है प्रतिपल सींचा।
स्वप्न, सत्य की दूरी के तुम हुए सारथि अविरल,
गंतव्यों की माला का युग वाहन तुमने खींचा।


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भोजन टेबल पर रखा जा चुका था। नजर उठा कर देखा तो माँ सामने खड़ी थी। सूती साड़ी में लिपटी वह सादगी की प्रतिमूर्ति , चेहरा सर्द बर्फ की तरह शां...