Friday, July 17, 2020

छाया

मेरी छाया अब मुझसे बढ़ चली है,
सूर्य ढल रहा है, रक्ताभ है गगन।
पशु पक्षी और मैं घरों को चल पड़े,
किसी अधूरेपन में फंसा मेरा मन।


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मेरी माँ

भोजन टेबल पर रखा जा चुका था। नजर उठा कर देखा तो माँ सामने खड़ी थी। सूती साड़ी में लिपटी वह सादगी की प्रतिमूर्ति , चेहरा सर्द बर्फ की तरह शां...