Monday, July 20, 2020

प्रभात

प्रभात, तुम्हारा आना जब इतना तय है,
तम के भ्रम पर निश्चित जब जय है।
अनायास अँधेरे को अनंत क्यों माना,
क्यों कुछ लोगों में अज्ञात का भय है।


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मेरी माँ

भोजन टेबल पर रखा जा चुका था। नजर उठा कर देखा तो माँ सामने खड़ी थी। सूती साड़ी में लिपटी वह सादगी की प्रतिमूर्ति , चेहरा सर्द बर्फ की तरह शां...