Saturday, July 15, 2023

गांव

गांव बेचैन है परेशान है, शहर हो जाने के लिए समझो कुछ भी करने को तैयार है। थक गया है वह रुपयों की धीमी धीमी चाल से, पक गया है वह रोटी और दाल से।

खेत है तो पानी नहीं, पानी है तो खेत नहीं। उपज है तो दाम नहीं, जब दाम है तो उपज नहीं। फंस गया है गांव, ग्लोबल बाजार में।



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मेरी माँ

भोजन टेबल पर रखा जा चुका था। नजर उठा कर देखा तो माँ सामने खड़ी थी। सूती साड़ी में लिपटी वह सादगी की प्रतिमूर्ति , चेहरा सर्द बर्फ की तरह शां...