कई बार ऐसा लगता है कि हम जो कर रहे हैं, आखिर वह क्यों कर रहे हैं ? अधिकाँश सटीक उत्तर नहीं मिलता और कुछ समय बाद हम पहले से मिलता जुलता कुछ और भी कर रहे होते हैं।
एक आधे संत और आधे सांसारिक व्यक्ति ने कहा था। The keyword to divinity is often acceptance. और फिर हमें कितनी समझदारी से यह भी पता चल पाता है कि हम संसार में करने क्या आये हैं ?
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