कई बार समझ नहीं आता कि लोगों की विशिष्ट होने की ललक सामान्य है या फिर उनका सामान्य हो जाना विशिष्ट है ! ऐसा लगता है विशिष्ट हो जाना सभी के लिए संभव है, कभी भाग्य से, कभी कर्म से, कभी मर्म से, वह भी नहीं तो शर्म से या फिर किसी मनोरंजन से। लेकिन क्या सामान्य हो जाना सभी के लिए संभव है।
मानव और उसकी व्यवस्था का प्रादुर्भाव एक नए पड़ाव पर नयी दौड़ की तैयारी में है। कृत्रिम बुद्धिमता, शीघ्र ही मानव की प्रमुख विशिष्टता "बुद्धिमता" को ही सामान्य कर देने वाली है। अच्छी, बुरी, टेढ़ी, तिरछी, कुटिल, सज्जन, रचनात्मक, प्रशासनिक, वक्ता, अधिवक्ता, शिक्षक सारी बुद्धिमता को जबरन सामान्य करती एक पद्धति।
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