Saturday, July 15, 2023

लोकमान्यता

सांसारिक लोकमान्यता, समाज और व्यक्ति को दिशा देने वाली एक बड़ी शक्ति है। पीढ़ियों में व्यापक अंतर, उपभोक्तावाद की आंधी, व्यक्तिवाद के प्रादुर्भाव के साथ भी चैतन्य और सनातन लोकमान्यता जीवंत रखने के क्या मार्ग हो सकते हैं ?

क्या ऐसी मानव हितकारी लोकमान्यता बलिदान मांगती है ? और यदि हाँ, तो शाश्वत मूल्यों के अभ्युत्थान का वैसा मौन तपस्वी कौन बनना चाहेगा ? और यदि कोई आगे नहीं आएगा तो मूल्याधारित लोकमान्यताओं का क्या होगा ?
चित्र: साभार (छऊ लोकनृत्य का एक मुखौटा)



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