एक ओर जहां आजीविका की अनिश्चितता अनेक कष्टों का मूल है तो क्या आर्थिक प्रचुरता, आर्थिक स्वतंत्रता का पर्याय है?
भारत उत्सव और आनंद का देश रहा है। उत्सव और आनंद के मूल में धर्मनिष्ठ संतोष के साथ आर्थिक स्वतंत्रता की लंबे काल तक बडी भूमिका रही होगी! यदि भारत दरिद्र रहा होता, आर्थिक अंधकार में रहा होता तो अन्य सभ्यताओं की तरह उसने भी लूट को गौरवान्वित किया होता, न कि त्याग को।
समसामयिक भारत की बडी चुनौती एक सामान्य भारतीय की आर्थिक स्वतंत्रता सुनिश्चित करनी प्रतीत होती है।
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