बचपन और किशोरावस्था में मिले अनुभव मष्तिष्क पर गहरा प्रभाव छोड़ते हैं। अनुकूलन के बीज बोने का यह उचित समय होता है। हाँ, उर्वर मष्तिष्क उस बीज को कब तक पोषित करता है, अंततः वह व्यक्ति विशेष के चरित्र पर निर्भर करता है। फिर भी जो चिरंतनता के कृषक हैं वह तो अपना काम करेंगे।
और जब ऐसे प्रयोगों के मूल में समानुभूति हो, संवेदना हो, सत्य हो तो ऐसे प्रयोग मील का पत्थर बन जाते हैं। आज ऐसे ही एक प्रयोग के शुभारम्भ का साक्षी बनने का अवसर मिला।
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