Wednesday, December 25, 2019

मैंने अटल को देखा है।

मैंने अटल को देखा है।

सदियों की चोटिल आकांक्षाओं,
परतंत्र पड़े मानवता की विरासत,
आसेतु हिमाचल का एकात्म लिए,
विश्व के कोलाहल को चीरते और
भारत की उपेक्षित आत्मा को सींचते।

मैंने अटल को देखा है।

सामान्य को सर्वमान्य होते हुए,
जन चैतन्य को वाणी से झकझोरते हुए,
आदर्श को पांवो से चलते, होठों से बोलते हुए,
इतिहास के पन्नों पर स्वर्णिम भारत के
पुनर्जागरण का नया अध्याय लिखते हुए।

मैंने अटल को देखा है।

त्याग, तपस्या और सृजन की बेकली लिए,
चित्त में मानवता, ह्रदय में माँ भारती की मूर्ति लिए,
भारत के कंकर कंकर के शंकर का आह्वान लिए,
अंत्योदय का दौर नया, राष्ट्र एकात्म को साधते,
भारत के अभिनव दर्शन को युगों का संधान देते हुए।

मैंने अटल को देखा है।

भारत के विमर्श को नया संवाद देते हुए,
‘इदं राष्ट्राय न ममः‘ को पल पल चरितार्थ करते हुए,
लाखों श्रोताओं को वाणी के पाश में बांधे,
विचारों के उत्कर्ष से साक्षात्कार कराते हुए,
भारत के धुंधलके को 21 वी सदी का दिनमान देते हुए,

मैंने अटल को देखा है।

क्या रहता, क्या खो जाता है?

सागर सदृश जीवन में उत्तुंग तरंगें स्मृतियों की जब कूल तोड़ कर बढ़ती हों कुछ बह जाता, कुछ रह जाता है। कितने मेरे थे, कितनों का मैं, पर काल बिंद...