Friday, July 31, 2020

जीवन

जीवन सिर्फ झरने से गिरता पानी नहीं है,
ऊपर से नीचे बहती एक कहानी नहीं है।
इसमें तो भाप बन उड़ने का साहस भी है,
चाँद सूरज से लुक छिप का बादल भी है।
देर या सबेर बरस जाने की बेकली है,
वर्षा की बूंदों सा लुट जाने के मौसम है।
एक चक्कर सा जैसे कोई चल रहा है,
सच झूठ पता नहीं,जीवन बस चल रहा है।


बिहार में बहार

चुप रहो बाबू, बिहार में बहार है,
न आर न पार, सब मझधार है।

चारों बगल यहाँ नदिया का धार है,
पानी के कैंची से कटा घर बार है।

गंगा आ कोसी में बढ़ रहा ज्वार है,
आतम उदास यहां जिनगी पहार है।

करेजा के टुकड़ा को कल से बुखार है,
सुनते हैं डॉक्टर करोना से बीमार है।

डूबत के तिनका नहीं, लाठी के जुगाड़ है,
अबकी बिहार में सचहु बहार है।



Wednesday, July 29, 2020

रंग बदलने का शरम

रंग बदलने का शरम अब और नहीं,
सर झुका के चलना अब और नहीं।
इंसान को इतना करीब से देखा मैंने,
सरफ़रोश हूँ अब कोई अफ़सोस नहीं।

PC- Capt Suchil Kumar


पुष्प

कंटक वन में पुष्प पल्लवित,
अभिनव रंगों में झूम रहा था।
धूप घाम आंधी सह कर भी,
जीवन मधुरस मैं लुटा रहा था।

थोड़े विषाद थे, थोड़े से हर्ष,
छोटे जीवन का बड़ा उत्कर्ष।
मैं प्रतिपल युग को बाँट रहा,
अभिनव सुगंध,अभिनव विमर्श।

PC - Capt Sushil Kumar



घोंसले के तिनके

घोंसले के तिनके मैं चुन चुन लाता हूँ,
विश्वास के आलिंगन में इनको पिरोता हूँ।
प्रेम के बंधन में कुछ छोर फंसाता हूँ,
उम्मीद की डोर लिए बढ़ता ही मैं जाता हूँ।
घोंसले के तिनके मैं चुन चुन लाता हूँ।
PC- Capt Sushil Kumar


Monday, July 27, 2020

सत्य

न दिन है न रात है
न सुख में न दुःख में
न धन है न निर्धनता
न राग में न वैराग में
न शक्ति न दुर्बलता
न जीवन न मृत्यु।

सत्य क्या है ?
तुम, मैं या यह संसार !

अर्धसत्यों के जंगल में, सत्य खोजता हूँ
माया में सत्यम शिवम् सुंदरम ढूंढता हूँ।

PC- Internet


प्रश्न चिन्ह

झोले में बंद किताबें,मैंने पढ़ी हैं,
गुरु जी ने बारम्बार पढ़ाई भी।
सीख, समझ कर बड़ा बनूँगा,
माँ ने यह बात बतायी भी।
लेकिन उन पाठों का क्या,
उन प्रश्नों का क्या ?
जिनकी श्रृंखला लम्बी है।
जो मुझसे शुरू हो कर अनंत तक
मन और मष्तिस्क के क्षितिज पर
अनवरत प्रश्न चिन्ह लिए !


Monday, July 20, 2020

प्रेम

कंकड़ में, पत्थर में, जीव में, जंतर में,
अनहद अनुराग है, कोई वैराग्य नहीं।
त्याग है, समर्पण है, प्रेम पारिजात है ,
प्रेम के बंधन में शब्दों का मोल नहीं।
मौन भी उत्सव है, क्रंदन भी मंगल है,
प्रेम के पल २ को युग का है मोह नहीं।



रंगमंच

सृजन - संवर्धन - विनाश का मन्त्र ही तो हो
जीवन ! तुम बनने बिगड़ने का चक्र ही तो हो।
पता नहीं कब फूल, फल और फिर परिपक्व,
शैशव, यौवन और वार्धक्य का रंगमंच ही तो हो।


प्रभात

प्रभात, तुम्हारा आना जब इतना तय है,
तम के भ्रम पर निश्चित जब जय है।
अनायास अँधेरे को अनंत क्यों माना,
क्यों कुछ लोगों में अज्ञात का भय है।


गति ही जीवन

चलना ही जीवन है, गति ही जीवन रेखा
प्रत्याशा के अंकुर को तुमने है प्रतिपल सींचा।
स्वप्न, सत्य की दूरी के तुम हुए सारथि अविरल,
गंतव्यों की माला का युग वाहन तुमने खींचा।


Friday, July 17, 2020

छाया

मेरी छाया अब मुझसे बढ़ चली है,
सूर्य ढल रहा है, रक्ताभ है गगन।
पशु पक्षी और मैं घरों को चल पड़े,
किसी अधूरेपन में फंसा मेरा मन।


सांझ

रात के चौखट पर खड़ी सांझ के,
कुछ अनमने अटपटे से सवाल हैं।
दबे होठों दिन का हिसाब पूछती,
अपनी सांझ भी कुछ बेहिसाब है।


जिजीविषा

श्रृंखला हूँ मैं सृजन का, जिजीविषा अम्लान हूँ
परुष परिस्थितियों में बढ़ता प्रेम का आधार हूँ।

जी गया तो मैं न जाने कितने जीवन दान दूंगा
प्राण दूंगा, श्राण दूंगा, मृत्यु पर भी त्राण दूंगा।

PC- Internet




Wednesday, July 15, 2020

मोक्ष

मोक्ष की सीढ़ियां बिछी पड़ी हैं, मद्धिम मद्धिम दिख भी रही हैं। विश्वास है आराध्य पर, आराधना पर, हाड मांस के पांवों के भी पंख लगेंगे। छूटेगा जन्मों का फेरा, हारेगा अँधेरा, चिर विराग को अनुराग के सूर्य मिलेंगे।

PC- Internet


Monday, July 13, 2020

जीवन देखूं या जंगल ?

कितने हैं जिन्होंने नहीं काटे , सत्य और न्याय के मूक वृक्ष ? बारी बारी सबने लूटा, खूब समेटा पेड़ों की कीमत को ईंटों में बदला। मैं, जीवन के तीसरे पहर, जीवन देखूं या जंगल ?



राम ....

काल रथ पर सत्य करता जब आरोहण, कल्याण एवं मुक्ति बनते ध्येय पावन, शक्ति की प्रत्यंचा पर संयम सुशोभन, राम प्रभु को देख करते दिग्पाल वंदन।

PC - Internet


बेखुदी ....

एक धूप कलेजे की, एक छाँव सी मदहोशी, इस शहर ए इंसान में कोई अपना नहीं होता। बेखुदी का कोई वक़्त, कोई इल्म नहीं होता, कोई जगह नहीं होती, कोई शहर नहीं होता।


Tuesday, July 7, 2020

जाल

बीते हुए तूफ़ान की कुछ याद ले कर,
फिर समंदर में चला हूँ जाल ले कर।
फिर निकालूँगा मेरे बच्चों के निवाले,
मछलियां छोटी बड़ी सब दाम वाले।

मछलियों से दोस्ती मैं कर न पाया,
मछलियों से मैंने अपना घर चलाया।
जाल ही मैंने है जीवन भर बिछाया,
यही मेरा सत्य, इतनी ही मेरी माया।

PC- Capt Sushil Kumar


बिंदु और सागर

कभी कभी बरस लिया करो !
प्रेम, अभिलाषा, लिप्सा, उन्माद, आवेग, कुंठा, उत्कंठा
सभी को समय समय पर बहने दिया करो।
तुम उम्मीदों, अपेक्षाओं के श्मशान या कारागृह तो नहीं,
जहाँ से किसी भाव की मुक्ति संभव ही नहीं !
टूटने दो धैर्य के बांधों को कभी, मिलने दो बिंदु को सागर से,
उसकी भी तपस्या, पूर्णता को तरसती है।
स्वागत करो धरती पर गिरती हर बूँद का, उसकी मुक्ति का,
उसे भी अधिकार है नव यात्रा का, नव जीवन का।
कभी कभी बरस लिया करो !

PC- Dr Nitish Priyadarshi


वीर गति

वह तुम्हे सोच सोच मुस्कुराता था,
तुम्हे प्यार करता था, दुलारता था,
चुपके से कुछ बहुत बड़ा कर गया।

वह जो तुम्हारा था, सिर्फ तुम्हारा,
उसने सब कुछ देश को ही दे डाला।
जिसे ईश्वर भी नहीं चुका सकता
वैसे क़र्ज़ तले वो हमें गहरे दबा गया।

PC-Twitter #sacrifice


बूँद की सिफारिश

बादलों से मैंने थे कुछ बूँद मांगे,
उसने नदियों की सिफारिश दे बढ़ाई।
तन कोई अब सारे करवट सींचता है,
अंकुरें जीवन की फिर मन ने उगायीं।

PC- Capt Sushil Kumar


माँ

दिन रात तोते जैसी रट लगाती,
सुबह शाम पढ़ो पढ़ो बोलती,
माँ अब पढ़ने को नहीं कहती।
उसकी कोशिशें, उसके सारे प्रयोग,
अब हल्दी, तुलसी, अदरक, नीम्बू
और बाकी उसकी पूजा की आरती।
PC- Akash Soni

प्राची

वह चला प्राची से देखो “प्रात का अभियान“
फिर जगेंगे प्राण, होंगे नित सृजन के गान।
लोक से परलोक तक ज्योति का है सोपान,
आत्म से परमात्म तक है ब्रह्म का आह्वान।।

वह चला प्राची से देखो “प्रात का अभियान“
PC- Capt Sushil kumar


सुबह

वह सुबह जिसकी प्रतीक्षा युग युगों से थी,
आज मन के वातायन, उसने ही दस्तक दी।
खिल उठे हैं रोम, कौतुक दृष्टि में है भर रहा,
चहुंओर जैसे राग मंगल कोई अनुपम बज रहा।

सुप्रभात।


क्या रहता, क्या खो जाता है?

सागर सदृश जीवन में उत्तुंग तरंगें स्मृतियों की जब कूल तोड़ कर बढ़ती हों कुछ बह जाता, कुछ रह जाता है। कितने मेरे थे, कितनों का मैं, पर काल बिंद...