These blogs r fondest of my words, closest to my bosom, deeply enriched with the outcomes of an introspective sojourn.... The panoramic view of sinusoidal life and its adornments ....
Friday, July 31, 2020
बिहार में बहार
चुप रहो बाबू, बिहार में बहार है,
न आर न पार, सब मझधार है।
चारों बगल यहाँ नदिया का धार है,
पानी के कैंची से कटा घर बार है।
गंगा आ कोसी में बढ़ रहा ज्वार है,
आतम उदास यहां जिनगी पहार है।
करेजा के टुकड़ा को कल से बुखार है,
सुनते हैं डॉक्टर करोना से बीमार है।
डूबत के तिनका नहीं, लाठी के जुगाड़ है,
अबकी बिहार में सचहु बहार है।
न आर न पार, सब मझधार है।
चारों बगल यहाँ नदिया का धार है,
पानी के कैंची से कटा घर बार है।
गंगा आ कोसी में बढ़ रहा ज्वार है,
आतम उदास यहां जिनगी पहार है।
करेजा के टुकड़ा को कल से बुखार है,
सुनते हैं डॉक्टर करोना से बीमार है।
डूबत के तिनका नहीं, लाठी के जुगाड़ है,
अबकी बिहार में सचहु बहार है।
Wednesday, July 29, 2020
Monday, July 27, 2020
Monday, July 20, 2020
Wednesday, July 15, 2020
Monday, July 13, 2020
Tuesday, July 7, 2020
बिंदु और सागर
कभी कभी बरस लिया करो !
प्रेम, अभिलाषा, लिप्सा, उन्माद, आवेग, कुंठा, उत्कंठा
सभी को समय समय पर बहने दिया करो।
तुम उम्मीदों, अपेक्षाओं के श्मशान या कारागृह तो नहीं,
जहाँ से किसी भाव की मुक्ति संभव ही नहीं !
टूटने दो धैर्य के बांधों को कभी, मिलने दो बिंदु को सागर से,
उसकी भी तपस्या, पूर्णता को तरसती है।
स्वागत करो धरती पर गिरती हर बूँद का, उसकी मुक्ति का,
उसे भी अधिकार है नव यात्रा का, नव जीवन का।
कभी कभी बरस लिया करो !
PC- Dr Nitish Priyadarshi
प्रेम, अभिलाषा, लिप्सा, उन्माद, आवेग, कुंठा, उत्कंठा
सभी को समय समय पर बहने दिया करो।
तुम उम्मीदों, अपेक्षाओं के श्मशान या कारागृह तो नहीं,
जहाँ से किसी भाव की मुक्ति संभव ही नहीं !
टूटने दो धैर्य के बांधों को कभी, मिलने दो बिंदु को सागर से,
उसकी भी तपस्या, पूर्णता को तरसती है।
स्वागत करो धरती पर गिरती हर बूँद का, उसकी मुक्ति का,
उसे भी अधिकार है नव यात्रा का, नव जीवन का।
कभी कभी बरस लिया करो !
PC- Dr Nitish Priyadarshi
वीर गति
वह तुम्हे सोच सोच मुस्कुराता था,
तुम्हे प्यार करता था, दुलारता था,
चुपके से कुछ बहुत बड़ा कर गया।
वह जो तुम्हारा था, सिर्फ तुम्हारा,
उसने सब कुछ देश को ही दे डाला।
जिसे ईश्वर भी नहीं चुका सकता
वैसे क़र्ज़ तले वो हमें गहरे दबा गया।
PC-Twitter #sacrifice
तुम्हे प्यार करता था, दुलारता था,
चुपके से कुछ बहुत बड़ा कर गया।
वह जो तुम्हारा था, सिर्फ तुम्हारा,
उसने सब कुछ देश को ही दे डाला।
जिसे ईश्वर भी नहीं चुका सकता
वैसे क़र्ज़ तले वो हमें गहरे दबा गया।
PC-Twitter #sacrifice
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क्या रहता, क्या खो जाता है?
सागर सदृश जीवन में उत्तुंग तरंगें स्मृतियों की जब कूल तोड़ कर बढ़ती हों कुछ बह जाता, कुछ रह जाता है। कितने मेरे थे, कितनों का मैं, पर काल बिंद...
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Bol Bam - A journey of faith and surrender. (Sultanganj to Deoghar)- Shravan , 2011 It was raining heavily in Kolkata. The streets were ...
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My breath was uneven,dry throat,shivering hands,sagging morale and i was a living corpse or a dying man. Alone all alone in the vastness of ...