Thursday, August 27, 2020

लंका

लंका जल रही थी धू धू

मैं अकिंचन, अविश्वास में डूबा,
अपनी लघुता में कुछ ढूंढ रहा था।
मैं ही हूँ, या मेरे अंदर कुछ और,
साँसों में श्री राम नाम चल रहा था।



यह गाँव है बाबू।


यह गाँव है बाबू।

साइकिल है, झोरा है,
हाट है, बाजार है।
पैडल के मारने से,
चलता संसार है।
बूढ़ा और बच्चा का,
फैला यहाँ जाल है।
तरक्की का पहिया का,
धीमा धीमा चाल है।
जितना होसियार हुआ,
शहर का किरायेदार है।
गाँव का मालिक अब,
शिक्षित बेरोजगार है।
यह गाँव है बाबू।

Tuesday, August 11, 2020

कृष्णा

षड्यंत्रों के यंत्र मन्त्र में डूबी धरती जब, 

त्राहि त्राहि हो पीड़ित सी सकुचाती है। 

सहज, सरल, सापेक्ष सत्य की रक्षा को, 

परम शक्ति जब चिंतित हो अकुलाती है।  


दुष्ट, अधम और पापी जब मदमस्त हुए,

छोटे 2 इंद्र सभी, टूट बिखर निस्तेज हुए। 

महासमर में पाप विहँसता, पुण्य तड़पता,

धर्म ध्वजा जब आहत, कुंठा में मौन हुए।  


सत्य, सनातन लीला करने तब स्वयं चले,

ले रूप कृष्ण का लीलाधर तब स्वयं बढे। 

अन्यायी को गति, भक्त को मुक्ति दिया, 

जगत गुरु ने महि मंडल  कल्याण किया। 


विकराल काल से दुष्टों का संधान किया

कृष्णा ने प्रत्येक पापी का नाश किया। 

सत्य, समर्पण, निष्ठा को वरदान दिया, 

शरणागत का स्नेह सिक्त उद्धार किया। 

Friday, August 7, 2020

जीवन का हस्ताक्षर

अभिलाषा का बिंदु नहीं,
मैं जीवन का हस्ताक्षर हूँ।
रूप रंग के कोलाहल में,
जीवन का मैं संवाहक हूँ।

उपासना की मौन प्रस्तुति,
प्रेमी के अकथित उदगार।
शोभा का श्रृंगार अलंकृत,
संवेदना का मैं हूँ आभार।

हर्ष विषाद से परे खड़ा हूँ,
जीवन छोटा, सन्देश बड़ा हूँ।





Monday, August 3, 2020

उपवन का एक कुसुम

मेरा ये रंग, मेरा ये ढंग
सबसे अलग, सबसे मलंग।
रस-गंध मुक्त मैं सहज सृजन,
परिमल भावों के मेरे उमंग।
तृषित नयन को पुलकित करता
मैं उपवन का एक कुसुम हूँ।
शोभा का श्रृंगार अकिंचन,
मधुवन का वैरागी पराग हूँ।
PC- Shefali Vaidya


Saturday, August 1, 2020

दीप्ति, तिमिर और छाया

देखना, सुनना, रंगों को पढ़ना, रौशनी
और छाया के सन्दर्भों को समझ पाना।
मैंने सीख लिया रुकना, ठहरना और
कभी कभी समय किनारे बैठ जाना।
दृश्य बोलते हैं मुझसे, संकेतों की भाषा
में सुनता हूँ जीवन के विविध रंग राग ।
दीप्ति, तिमिर और छाया, आगत विगत
के बीच निमीलित, पल पल का अनुराग।
PC- Happy Soul


क्या रहता, क्या खो जाता है?

सागर सदृश जीवन में उत्तुंग तरंगें स्मृतियों की जब कूल तोड़ कर बढ़ती हों कुछ बह जाता, कुछ रह जाता है। कितने मेरे थे, कितनों का मैं, पर काल बिंद...