Saturday, January 14, 2023

गंगासागर

 2 दशक पहले की बात है।

मैं कैडेट था। सुबह 4 बजे से काम करना होता था। उस सुबह जब उठा तो पता चला कि जहाज ने रात में ही गंगासागर में लंगर डाल दिया है। मुंबई के इंदिरा डॉक्स से होते हुए हमें कोलकाता के खिदिरपुर बंदरगाह जाना था। गंगा में अंतर्देशीय नौवहन के नियम ज्वार भाटा और जहाज की गहराई से जुड़े थे। यहां प्रतीक्षा सामान्य प्रक्रिया थी।
"गंगा", बचपन से यदि किसी एक संज्ञा ने अत्यधिक प्रभावित किया हो तो उसमें प्रमुख "गंगा" ही हैं। मैं रोमांचित था, रोमांच के मूल में संस्कृति, आस्था, समर्पण और अनुभव थे। कल ही तो एक फॉरवर्ड यूनियन का बंगाली वरिष्ठ सहकर्मी बता रहा था कि कैसे पुराने जमाने में गंगासागर में जहाज के लंगर डालते ही कर्मी नदी का पानी निकाल स्नान करते थे। पूंजीवाद, मशीनवाद, उसके यूनियन का वामपंथ और संस्कृति को समर्पण के अनूठे संगम को मैं चिप्पिंग करते सुन रहा था। मैं संकोच में ही रहा कि मैं क्या बताऊँ, गंगा मैया मेरे लिए क्या हैं !
सैंड हेड्स, हाँ अंग्रेज़ नाविकों ने सागर द्वीप के पास के लंगर वाले क्षेत्र को यही नाम दिया था। पूर्वी भारत में सुबह जल्दी होती है। मैं सुबह में ब्रिज पर ड्यूटी देता था। उषा की किरणें गंगासागर की जल तरंगों से मानों खेल रही थी। धवल सिकता कणों ने, सामान्यतः नील वर्णी दिखने वाले जल को भी अद्भुत धवलता में स्नात कर दिया था। और उस पर स्वर्ण बिखेरता सूरज। पूरा दृश्य ऐसा हो रहा था जैसे रंगों में उत्सर्ग की कोई प्रतिस्पर्धा चल रही हो।
मैं मौन, सूर्य को देख रहा था। मैं, समय, काल और गंगा की सागर होती धारा को देख रहा था। मैं सोच रहा था, कितने तपस्वी, कितने मनस्वी, कितने यशस्वी यहीं आ कर गंगा से सागर हो गए होंगे। सगर से ले कर बंकिम तक, वाल्मीकि से ले कर तुलसी तक, भीष्म से ले कर नरेंद्र तक, आस्था, पराक्रम और तपस्या को कूल देती गंगा यहां सागर और महासागर में सब तिरोहित कर देती हैं।
संक्रांति निकट है। गंगासागर में हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी विराट समागम लगेगा। जनता जनार्दन का मेला लगेगा, बिलकुल देशज। लोग कहते हैं "सारे तीरथ बार बार, गंगा सागर एक बार". अपनी उलझनों का पूरा दायित्व लेते हुए मैं फिर से मौन को चुन लेता हूँ।
PC- Unknown



क्या रहता, क्या खो जाता है?

सागर सदृश जीवन में उत्तुंग तरंगें स्मृतियों की जब कूल तोड़ कर बढ़ती हों कुछ बह जाता, कुछ रह जाता है। कितने मेरे थे, कितनों का मैं, पर काल बिंद...