Thursday, February 17, 2022

रात

उनींदी रात में जब पूनम की चांदनी हो, 

सर्द के आँचल में कोई आग लगी सी हो। 


सितारे चिंगारियों से जल के जो बुझते हों,

बिखरे हुए मन के जो जज्बात सुलगते हों।


वही रात खिड़कियों पे आवाज़ लगाती है,

एक धुंध अँधेरे का और चाँद का बाती है। 


बीते हुए अफसानों की बारात सजी है, 

सपने भी चल रहे हैं और नींद नहीं है।


वक़्त कभी खुल कर किसी का नहीं होता,

कागज़ के पैमानों में पानी नहीं टिकता। 


ख़ामोशी अब सिरहाने से शोर मचाती है, 

यह रात किसी भोर से अब आँख चुराती है। 


Tuesday, February 1, 2022

शुभ संकल्प सजाते हैं हम


शुभ संकल्प सजाते हैं हम, शुभ संकल्प सजाते हैं हम।

राष्ट्र उदय की चिर बेला में, शुभ संकल्प सजाते हैं हम।


तन मन धन और प्राण समर्पित, सृजन यज्ञ की पावन ज्वाला,

भारत भू की शाश्वत उन्नति, का सम गीत सुनाते हैं हम।


कल्याण भाव हो विजयी निरंतर, परमारथ का बढे पराक्रम,

वसुधा का सम्मान बढ़ाते, सृजन घोष करते जाते हम।


विजय धर्म की दिशा दिशा हो, कही रहे न कलुष निशा हो,

संकल्पों की प्रत्युषा में यह संकल्प सुनाते हैं हम।


स्वाभिमान, मर्यादित जीवन, राष्ट्र हेतु सर्वस्व समर्पण,

अभिनव युग के प्रतिमानों में भाव सनातन भर जाते हम।


शुभ संकल्प सजाते हैं हम, शुभ संकल्प सजाते हैं हम।

राष्ट्र उदय की चिर बेला में, शुभ संकल्प सजाते हैं हम।


PC- Unknown

क्या रहता, क्या खो जाता है?

सागर सदृश जीवन में उत्तुंग तरंगें स्मृतियों की जब कूल तोड़ कर बढ़ती हों कुछ बह जाता, कुछ रह जाता है। कितने मेरे थे, कितनों का मैं, पर काल बिंद...