Wednesday, August 30, 2023

नियति

नियति ने पूछा "कैसे हो तुम"? प्रत्युत्तर में मैं कुछ बोल नहीं पाया। कुछ रहस्य स्पष्ट हो चुके थे। बोलता भी क्या उसे जो प्रेम भी है और पाषाण भी, जो गणित भी है और साहित्य भी, जो दैव भी है और दानव भी, जो सबका है और किसी का नहीं। मेरे मौन में उसने अपना उत्तर ढूंढ लिया था। 

वैसे वर्षों के चिंतन से ढूँढा तो उसे मैंने था। कितना कुछ बुनती है वह, रंग बिरंगा, सरद गरम, ऊंचा नीचा। और हर ऊंचाई पर हम आनंद और आह्लाद से अभिभूत और प्रत्येक पतन में अस्तित्व का संकट। झूला ही तो है, जीवन, समय और नियति। जो गति की समझ को स्थायी कर गया वह पार, और जो उलझा उसे फिर दूसरी बार।




Friday, August 11, 2023

सत्य, सनातन लीला करने तब स्वयं चले

षड्यंत्रों के यंत्र मन्त्र में डूबी धरती जब,

त्राहि त्राहि हो पीड़ित सी सकुचाती है।

सहज, सरल, सापेक्ष सत्य की रक्षा को,

परम शक्ति जब चिंतित हो अकुलाती है।


दुष्ट, अधम और पापी जब मदमस्त हुए,

छोटे 2 इंद्र सभी, टूट बिखर निस्तेज हुए।

महासमर में पाप विहँसता, पुण्य तड़पता,

धर्म ध्वजा जब आहत, कुंठा में मौन हुए।


सत्य, सनातन लीला करने तब स्वयं चले,

ले रूप कृष्ण का लीलाधर तब स्वयं बढे।

अन्यायी को गति, भक्त को मुक्ति दिया,

जगत गुरु ने महि मंडल कल्याण किया।



Monday, August 7, 2023

जीवन छोटा, सन्देश बड़ा हूँ

अभिलाषा का बिंदु नहीं,

मैं जीवन का हस्ताक्षर हूँ। 

रूप रंग के कोलाहल में, 

जीवन का मैं संवाहक हूँ। 


उपासना की मौन प्रस्तुति, 

प्रेमी के अकथित उदगार। 

शोभा का श्रृंगार अलंकृत, 

संवेदना का मैं हूँ आभार।   


हर्ष विषाद से परे खड़ा हूँ,

जीवन छोटा, सन्देश बड़ा हूँ।




Sunday, August 6, 2023

मेरे मन के पोत

मेरे मन के पोत 

समय के सागर पर 

कभी मौन से बाते करते 

कभी शोर की चुप्पी सुनते।


गहन रात्रि में लुप्त 

दिवा में बढ़ता घटता 

किसी सांझ की परछाई सा 

मैं अपनी अनुभूति तकता।




क्या रहता, क्या खो जाता है?

सागर सदृश जीवन में उत्तुंग तरंगें स्मृतियों की जब कूल तोड़ कर बढ़ती हों कुछ बह जाता, कुछ रह जाता है। कितने मेरे थे, कितनों का मैं, पर काल बिंद...