Saturday, June 13, 2020

दरख्तों की जड़ें

एक रात ठंडी, जागती सी बीत जाती है, धुंधलके सुबहों के बीते न बिताये जाते। उसने चट्टान बन तूफानों से बस्ती बचाई, उसे अपनी दरख्तों की जड़ें अब तोड़ती हैं।


राष्ट्र

प्रजा के चतुर्विध रंजन के साधन को राष्ट्र कहते हैं | चतुर्विध रंजन के साधन का अर्थ है चारों पुरुषार्थों की उपलब्धि का अवसर प्रदान करके सर्वांगीण रंजन के समस्त उपकरणों का समुच्चय.ऐसा टिकाऊ सनातन राष्ट्र संसार में एक ही होता है जिसे प्रजा का चतुर्विध भरण करने के कारण भारत कहते हैं|

आने वाली पीढ़ी के लिए

तुम ! राह बनाना, स्वयं चलना, दूसरों को दिखाना। वही जीता है, जो शिला पर आलेख रच जाता है, खैंच जाता है। तुम स्वयं संघर्ष करना, दुःख से, दैन्य से, अभाव से। और हाँ, अगली पीढ़ी के पग कालीन पर न हों, पर काँटों पर भी नहीं हों। --- आने वाली पीढ़ी के लिए ---




विहान

प्रारम्भ ही है जीवन रहस्य ! घोर तिमिर का अंत सुनिश्चित, नत भावों की सीमा निश्चित। सीमित है जग में विनाश यह, पथ विहान का सदा प्रतीक्षित। सृजन बिंदु जब आगे बढ़ते, बढ़ विनाश की छाती दलते। लुंठित कुंठित से युग धारा को, सहज सफल रंगों से भरते। -विहान के सूर्य को समर्पित।


धर्म रथ

धर्म संकट हो तो समझो धर्म जीवित है अभी, धर्म पर हो वार तो फिर चुप रहे वो क्लीव ही। द्वंद्व से निकलो धनञ्जय, कीर्ति पथ है बढ़ चलो, भूल सारे मरण जीवन, धर्म रथ के रथी बनो।।

PC- Internet


जाल

माँ ने समझाया था। बहेलिया आएगा, जाल बिछायेगा, दाने डालेगा, जाल में कभी मत फसना, वरना वह ले जायेगा, खेलेगा,खायेगा,बांधेगा,मारेगा, बाजार में बेचेगा। फिर भी, दाने -जाल -शिकारी का खेल चालू है, हर बढ़ते बेसुध कदमों के पीछे कोई शिकारी है।



बीज और बारिश

जीवन, तत्वों से बनता,तत्वों में ही जा मिलता है,
आपने कौन से तत्वों को जोड़ जीवन उगाये हैं !
आपके विचार, शब्द, आपके कर्म बीज ही तो हैं।
इनको सींच आपने कौन सी फसल उगाई है ?
कुछ बीज अच्छे डालिये, बारिश फिर से आयी है।



अस्तित्व और अस्मिता

वर्षा मेरी संजीवनी है, मेरी माटी मेरा अस्तित्व,
मेरे बैल, मेरा हल, मेरे हाथ ; यही मेरे यन्त्र हैं।
सूखा अस्तित्व सिंच गया है, मेरे यन्त्र चल पड़े हैं,
अस्मिता के बीज हरियाली बन कर छाने वाले हैं।

PC - Capt Sushil kumar




माँ

माँ तुम्हारे अंक में जीवन फले, जीवन बढे,
सोख तेरे प्राण पोषण,सृष्टि का प्रहसन चले।
भगीरथी यह त्याग की,यह विशाखा प्रेम की,
माँ तुम्हारी यह तपस्या युग युगों को तारती।

PC- Capt Sushil


हौसला

तुम्हें जाना कहाँ है ? विराट समुद्र मुझसे प्रश्न करता था !
पंख कमजोर थे, कुछ डर था, कहीं अपने में कुछ कम था।
अब मैंने हौसलों के पंख पसार दिए हैं, लक्ष्य ही अब दृष्ट है,
मेरी लघुता अपना विस्तार, वह देखता है, हिसाब करता है,
जय पराजय, मरण जीवन, दोनों का संवाद बना कर रखता है।

PC- Capt Sushil Kumar


मित्र

भरे नयन जो सहज हंसा दे, मित्र वही है,
झंझावातों में जो हाथ न छोड़े, मित्र वही है।
मित्र वही जो सुख दुःख में भी साथ खड़ा हो,
प्राणों में उमंग और अनहद सा आह्लाद भरा हो।

PC- Unicef


जीवन

प्रकृति जीवन का नित उपकार ले,
बांटती प्रतिपल विविध उपहार है।
जीते हैं पशु पक्षी यहां और कीट भी,
जिनका नहीं कोई गुप्त सा भंडार है।




दिनमान

संक्रमण कितना विकट हो रात्रि का,
कब कोई दिनमान रोके से रुका है।
सज रहा नभ में अजब मार्तण्ड पथ है,
विश्व के कल्याण का यह ज्योति रथ है।


Saturday, June 6, 2020

भोर

सुप्रभात

बीती निशा, आओ सृजन का नाद छेड़ें,
उठ नयी सी भोर का हम करें स्वागत।
स्वर्ण सी आभा का यह प्रत्यूष अद्भुत,
आओ बनाएं स्वप्न का वह दिव्य भारत।

अस्फुट


प्रभा

सुप्रभात

ओ प्रभा के सारथी अनथक अकेले
पूर्व से अपलक बढे तुम आ रहे हो।
छा रही है विश्व पर कैसी विभा यह,
स्वप्न मानो सत्य होते जा रहे हों।

अस्फुट


रौशनी

सुप्रभात
रौशनी चारों दिशा के रोम भरती जा रही,
अब क्षितिज पर सूर्य का रथ बढ़ चला।
श्रांत मन में अब नए से लक्ष्य जगने लगे,
यह सवेरा सृजन के दिनमान को ले बढ़ चला।
अस्फुट

क्या रहता, क्या खो जाता है?

सागर सदृश जीवन में उत्तुंग तरंगें स्मृतियों की जब कूल तोड़ कर बढ़ती हों कुछ बह जाता, कुछ रह जाता है। कितने मेरे थे, कितनों का मैं, पर काल बिंद...