Thursday, October 29, 2020

माता कल्याण करो।

 माँ ! उद्धार करो।

माता कल्याण करो, शक्ति, भक्ति, नव तेज, विश्व नवल, नव आशा, नव नव सब निर्माण करो। माता कल्याण करो। अंत करो आतंक, दुष्ट का निश्चय ही संहार करो। माता ! श्रांत, क्लांत से नर नारी हैं, नव ऊर्जा का संचार करो। माता कल्याण करो। फोटो - मित्र जॉयदीप पाल



दीपक

मैं तम की कालिमा में तड़पता था, ह्रदय भर अंधकार पर बिगड़ता था। प्रकृति के नियमों को कोसता था, बनाया अन्धकार क्यों सोचता था ! थके हारे मैंने एक दीपक जलाया, तम से लड़ने का एक शस्त्र बनाया। देखते ही देखते, कुछ लोग जुड़ गए, मेरे गाँव में अँधेरे के पाँव थम गए।

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Saturday, October 24, 2020

मछलियों की उम्र

हर दाने के साथ एक काँटा है,
मछलियों की उम्र हो चली है.
कुछ आज पकड़ी जायेंगी और
कुछ कल के लिए बच जाएँगी.

जो बचेंगी,वह भाग्य पर ऐठेंगी,
थैले भर इंसान भी इतराएगा.
सांझ आएगी, फिर सुबह होगी,
काल कुछ गिनती गिनता जायेगा.



Thursday, October 22, 2020

विजयी राम

ज्योति हो, उत्कर्ष हो, प्राणों में केवल हर्ष हो. न शीत हो न भीत हो, चहुदिश सुखद संगीत हो. हों राम विजयी युग युगों में, हो धर्म की संस्थापना. तम कहीं भी रह न जाए सत्य की हो साधना.

#Navratri




मेरा श्रम

मेरा श्रम ही संसाधन है,
मेरी भूख मेरी प्रेरणा.
मेरी निर्धनता मेरा त्याग
मेरा पहिया मेरा सुभाग.
भूख की भट्ठी में सांस सुलगाऊंगा
कोई आये या न आये
मैं रिक्शा चलाऊंगा.
रौशनी के महासागर से,
मैं एक जुगनू ले कर आऊंगा.
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हर्ष का श्रृंगार

क्या सुहावन दृश्य है
खेत जैसे रंग दिए हों
पुष्प जैसे सज गए हों
पल्लवन की छोर पर
जैसे हर्ष का श्रृंगार हो।



Sunday, October 18, 2020

अस्तित्व

प्रति पल पिघल रहा है,
अस्तित्व का स्वरुप।
कहीं शक्ति का भण्डार
कहीं दरिद्रता विद्रूप।
जीवन समय का यज्ञ,
समिधा बहुत है थोड़े।
प्रति पल अतीत होते,
जो क्षण अनंत से तोड़े।



वर्षा

यह वर्षा बीतेगी
घोंसले फिर से बनेंगे
संघर्ष की बाढ़ में
संकल्प की नांव ले
आने वाला कल अच्छा होगा।



Tuesday, October 6, 2020

तुझे ढूंढते हैं हर नज़र

तुझे ढूंढते हैं हर नज़र 

ऐ मेरे शहर ऐ मेरे शहर 


वो जो छिप गया वो सुकून था 

वो जो दिख रहा वो नसीब है।  


मेरी हसरतों की न फ़िक्र कर, 

अब सवाल उठते हैं वजूद पर। 


तू जख्म की न कोई बात कर, 

कोई कील ला ये सलीब है। 


मेरा मैं बिखर के सब हुआ ,

क्या अजब हुआ, क्या गजब हुआ। 


तुझे ढूंढते हैं हर नज़र 

ऐ मेरे शहर ऐ मेरे शहर 





क्षितिज

चलो यह बस्ते, यह बोझ फेंकते हैं,

दौड़ कर क्षितिज से कुछ पूछते हैं। आशा की तूलिका में रंग नए लपेटे, जीवन सूर्य को सुनहला कर देते हैं।



सीख

सीख सको,सीखो वृक्षों से,

जड़ें बाँध कर उठ जाना। नदिया की धारा से सीखो, मीलों मील चले जाना। सीखो नभ के तारागण से, अनुशासन में बंध जीना। सीखो शिक्षक की कक्षा से, दो दो पीढ़ी को गढ़ जाना। शिक्षक दिवस की शुभकामनायें।



उत्सर्ग

अब तिमिर को लांघ सूरज आ चुका है,

लालिमा जग में, ह्रदय में बढ़ चली है। खोल बाहें, कर रहे हम स्वस्ति गायन, छाई विभा उत्सर्ग की पहली कड़ी है।



गहरी रात

 देखो, आज की रात कितनी गहरी है,

औ' इसके साये थोड़े और भी संजीदा। हवा में पोशीदा सा एक कातिल है, देखो, सुबह किसको जगाती है ज़िंदा।


पंख पूरे फैलाओ

पंख पूरे फैलाओ

जितना संभव हो, उतना ऊंचे जाओ नापो गगन को, विराट अम्बर को। दृष्टि भू पर बनाये रखना जो साक्षात् है उसे अपनाये रखना। सम्भावना की उड़ान में यथार्थ को बचाये रखना। पंख पूरे फैलाओ



सुबह अब आ चुकी है

 हाँ। सुबह अब आ चुकी है।

धवल कांति गहरी निशा को देखो दूर करती जा रही है। किसी यज्ञ की पूर्णाहुति सा खिल रहे हैं पुष्प, हर्ष मानो कलरवों में हो रहा चहुओर है।




उलझन

 दुनिया मकड़ जाल ही है,

और इंसान एक मकड़ा। अपने हिस्से का बुनता, और बड़े जाल से जकड़ा। उलझन के धागे हैं, जालों में जाले हैं, बंधन है,जकड़न है,तृष्णा है तृप्ति है। मोह है,माया है, भ्रम की जो छाया है, जीने को,बढ़ने को,बढ़ के लपकने को, धन,बल और यश का जाल बनाया है।



उम्मीद

आदमी के पाँव जब से थोड़े ठिठके हैं,

उस बगीचे में नए उम्मीद जन्मे हैं।

तितलियों की पीढ़ियों को पंख निकले हैं,

आदमी की भीड़ में अब रंग बिखरे हैं।



यह चूल्हा ज़िन्दगी का

 यह चूल्हा ज़िन्दगी का,

सोच जलाये दिमाग के चूल्हे में, वक़्त, रोटियों से गोल पकाये हैं। अनुभव के अंगारे से जलती आंच, कभी मद्धम कभी तेज सुलगती है।





क्या रहता, क्या खो जाता है?

सागर सदृश जीवन में उत्तुंग तरंगें स्मृतियों की जब कूल तोड़ कर बढ़ती हों कुछ बह जाता, कुछ रह जाता है। कितने मेरे थे, कितनों का मैं, पर काल बिंद...