Thursday, January 13, 2022

उत्तरायण !

उत्तरायण !

एक तेज प्रतीक्षा में है
विचारों में, जीवन में
अपनी जगह बनाने को
ऊर्जा को व्यापक बनाने में।
ठण्ड लम्बी थी, ठंडी थी,
पर अंत का वचन सबके लिए है
इस ऋतु संकेत को पहचानो
अपनी भुजाओ थोड़ा व्यायाम दो,
आशा को नया आयाम दो।
वसंत द्वार पर खड़ा है
नए पुष्प पल्लव सजाओ,
कीर्ति के अध्याय बनाओ।
अगली ठण्ड कम कष्टप्रद हो
ऐसे कुछ प्रयास कर जाओ।
शनि से मंगल के बीच
जीवन के सारे रंग हैं।
सूर्य के पथ में सात रंग हैं।
जीना है तो संयम और शक्ति
ही चिरंतनता के मन्त्र है।
चलो उत्तरायण मनाते हैं
साक्षात देव की स्तुति गाते हैं।
अपने अंतर के सुषुप्त सूर्य को
थोड़ा और चमकाते हैं।



क्या रहता, क्या खो जाता है?

सागर सदृश जीवन में उत्तुंग तरंगें स्मृतियों की जब कूल तोड़ कर बढ़ती हों कुछ बह जाता, कुछ रह जाता है। कितने मेरे थे, कितनों का मैं, पर काल बिंद...