Thursday, December 29, 2022

स्तंभ मजबूत बनाओ

 स्तंभ मजबूत बनाओ

जितना समय लगे, लगाओ

जीवन शून्य से पूर्ण की यात्रा है,

इसमें छोटे मार्ग न बनाओ।


हर कमजोरी, हर सुगमता, 

वापस पीछे ले आएगी।

लाख अपने सर पटको,  

प्रकृति छूटे पाठ पढाएगी। 


जिसका सूक्ष्म सबल हो रहा,

मानो वही सफल हो रहा।

आधार की गहराईयों में, 

निष्ठा के स्तंभ बनाओ।



Wednesday, December 28, 2022

नेता

रस है उस रसना में,

जिसने राग तुम्हारा गाया। 

बेलीक, खरी बातों को, 

तुमने तो नीरस पाया।


आवर्त राग के शिखर जोड़, 

तुमने स्वर महल बनाए।

जो नहीं तुम्हारे मूल्य बिंदु, 

उनके भी मोल चुकाए।


भावों के अगनित बिचौलियों ने, 

जाने क्या क्या तुमको बेचा। 

मोहित से तुम डोल रहे, 

सच को न कभी तुमने सोचा।


पद, प्रभाव, धनबल वर्षा में,


 

लोट लोट सुख तुमने लूटा

साधु साधु, करतल गर्जन में,

मार्ग तुम्हारा कब का छूटा।

Thursday, February 17, 2022

रात

उनींदी रात में जब पूनम की चांदनी हो, 

सर्द के आँचल में कोई आग लगी सी हो। 


सितारे चिंगारियों से जल के जो बुझते हों,

बिखरे हुए मन के जो जज्बात सुलगते हों।


वही रात खिड़कियों पे आवाज़ लगाती है,

एक धुंध अँधेरे का और चाँद का बाती है। 


बीते हुए अफसानों की बारात सजी है, 

सपने भी चल रहे हैं और नींद नहीं है।


वक़्त कभी खुल कर किसी का नहीं होता,

कागज़ के पैमानों में पानी नहीं टिकता। 


ख़ामोशी अब सिरहाने से शोर मचाती है, 

यह रात किसी भोर से अब आँख चुराती है। 


Tuesday, February 1, 2022

शुभ संकल्प सजाते हैं हम


शुभ संकल्प सजाते हैं हम, शुभ संकल्प सजाते हैं हम।

राष्ट्र उदय की चिर बेला में, शुभ संकल्प सजाते हैं हम।


तन मन धन और प्राण समर्पित, सृजन यज्ञ की पावन ज्वाला,

भारत भू की शाश्वत उन्नति, का सम गीत सुनाते हैं हम।


कल्याण भाव हो विजयी निरंतर, परमारथ का बढे पराक्रम,

वसुधा का सम्मान बढ़ाते, सृजन घोष करते जाते हम।


विजय धर्म की दिशा दिशा हो, कही रहे न कलुष निशा हो,

संकल्पों की प्रत्युषा में यह संकल्प सुनाते हैं हम।


स्वाभिमान, मर्यादित जीवन, राष्ट्र हेतु सर्वस्व समर्पण,

अभिनव युग के प्रतिमानों में भाव सनातन भर जाते हम।


शुभ संकल्प सजाते हैं हम, शुभ संकल्प सजाते हैं हम।

राष्ट्र उदय की चिर बेला में, शुभ संकल्प सजाते हैं हम।


PC- Unknown

Thursday, January 13, 2022

उत्तरायण !

उत्तरायण !

एक तेज प्रतीक्षा में है
विचारों में, जीवन में
अपनी जगह बनाने को
ऊर्जा को व्यापक बनाने में।
ठण्ड लम्बी थी, ठंडी थी,
पर अंत का वचन सबके लिए है
इस ऋतु संकेत को पहचानो
अपनी भुजाओ थोड़ा व्यायाम दो,
आशा को नया आयाम दो।
वसंत द्वार पर खड़ा है
नए पुष्प पल्लव सजाओ,
कीर्ति के अध्याय बनाओ।
अगली ठण्ड कम कष्टप्रद हो
ऐसे कुछ प्रयास कर जाओ।
शनि से मंगल के बीच
जीवन के सारे रंग हैं।
सूर्य के पथ में सात रंग हैं।
जीना है तो संयम और शक्ति
ही चिरंतनता के मन्त्र है।
चलो उत्तरायण मनाते हैं
साक्षात देव की स्तुति गाते हैं।
अपने अंतर के सुषुप्त सूर्य को
थोड़ा और चमकाते हैं।



क्या रहता, क्या खो जाता है?

सागर सदृश जीवन में उत्तुंग तरंगें स्मृतियों की जब कूल तोड़ कर बढ़ती हों कुछ बह जाता, कुछ रह जाता है। कितने मेरे थे, कितनों का मैं, पर काल बिंद...