Monday, December 28, 2020

उड़ान

दाने की हो या ठिकाने की,
खोज खुद ही एक उड़ान है।
तृष्णा, तृप्ति और जिज्ञासा,
सतत बढ़ते रहने के अध्याय हैं।
उड़ो जब तक पंखों में प्राण हैं,
जब तक खुला आसमान है।
क्षितिज कब किसी का हुआ है,
अपनी नियति यह उड़ान है।
Pc - Capt Sushil Kumar



किनारे

किनारे पूछते हैं - नाविक तुम्हें मंज़िल मिल गयी क्या ? तट के समीप की तटस्थता कब तक ? कहाँ है तुम्हारी नाव या फिर क्यों नहीं जाते तुम अपने गाँव ?

क्या खोजते हो ? वह जो किसी को नहीं मिला ? या फिर खो गए हो, उलझ गए हो वियोग और संयोग के बीच ...



यह प्रभात

यह प्रभात और तुम,
दोनों अलसाये से, अनमने।
अभिज्ञान का सूरज हाँक लगाता,
देखो नया सवेरा आता।
Pc - Capt Sushil kumar



भाव, अभाव, प्रभाव

भाव, अभाव, प्रभाव कहो,
बचपन का रस है मतवाला।
है कौन पदार्थ कहो जग में
जिसमें हो प्रेम पिता वाला।

जो साम्राज्य ह्रदय में बसते हैं,
वह मोल दिए क्या मिलते हैं?
हो सावधान ! युग के निधान
उत्कर्ष मार्ग पर बढ़ते हैं।
PC - Capt Sushil Kumar


क्या रहता, क्या खो जाता है?

सागर सदृश जीवन में उत्तुंग तरंगें स्मृतियों की जब कूल तोड़ कर बढ़ती हों कुछ बह जाता, कुछ रह जाता है। कितने मेरे थे, कितनों का मैं, पर काल बिंद...