Friday, June 27, 2008

The reckoning.........

अब जाग ज़रा मेरे मौला...
है रात घनी, फैला है तम,
बिखरा जाता अब मेरा दम।
हाथ बढ़ा , तू थाम ज़रा,
है चोट बड़ी, आंसू हैं कम।
अब जाग.....
सदियाँ बीत गई हो जैसे,
मेरे होठों को मुस्काये।
अरसा गुजर गया हो जैसे,
किसी को दिल का हाल सुनाये।
अब जाग ......
है चाह बड़ी दीवानेपन की,
तेरी ही अब आस बची है।
दुनिया के झोंकों से लरज कर,
एक तेरी ही प्यास बची हैं।
अब जाग .......
है कसम खुदा, अब हाथ बढ़ा,
तू देर न कर, अब जाग ज़रा।
दे सफर वही जो तुझको पाऊं,
दीवाना बन , लूँ नाम तेरा।
अब जाग जरा मेरे मौला....

Thursday, June 26, 2008

Homage to the fallen tree..........

साये में सिमट गया कोई।
घोंसले टूटे , बगिया रूठी,
गुंचा सूखा, गीली माटी।
जोर चली आंधी कल शब्,
सब उजाड़ गया लगता है अब।
साये में .......
बरसों पहले एक बीज प्यार का,
माटी का ले साथ यार सा।
मौसम के रिमझिम फुहार पा,
दरख्त बना था देवदार का।
साये में .......
जमीन-दरख्त का प्यार अनूठा,
आंधी को कल रात न भाया।
हाय जाने वोह कौन सा लम्हा,
दरख्त टूट धरती पर आया ।
साये में ........
चीखी थी तब कोयल प्यारी,
गूज उठा था यह आकाश ।
पगली खिड़की के कोने से ,
दिखती अब भी है वो लाश।
साये में सिमट गया कोई.....


Tuesday, June 17, 2008

Divine.......

वक्त तेरी सलवटों में लिपटी , यादें कुछ पहचानी सी ।

आज भी दिख जाते वह मंजर, कुछ कुछ एक कहानी सी।

याद है अब तक दर्द दबा कर, तेरे होठों का मुस्काना,

भुला नही पाया इस पल भी, कुर्बानी का ताना बाना।

कहते हैं सब लोग खुदाई , रूठ चुकी इंसानों से ,

हमने तो बस तुमको देखा, पाँच दफा अजानो में ।

कुफ्र हमारा तुमको ढूंढे ,इमान दे जाए तुम्हारा साथ,

आज शाम भी दीया जला कर, करनी है तुमसे कुछ बात।

क्या रहता, क्या खो जाता है?

सागर सदृश जीवन में उत्तुंग तरंगें स्मृतियों की जब कूल तोड़ कर बढ़ती हों कुछ बह जाता, कुछ रह जाता है। कितने मेरे थे, कितनों का मैं, पर काल बिंद...