Monday, November 16, 2020

एक वह निमेष

वह एक पल, एक वह निमेष,
जिसमें दिख जाते सकल क्लेश।
दिख जाता जिसमे कर्म सकल,
दिखते जिसमें प्रारब्ध अटल।

जब भाव,प्रभाव, स्वभाव विफल,
जब लहराता हो काल सबल।
जब तुलता हो जीवन मृत्यु प्रबल,
जिस पल में हों सिद्धांत सकल।



दीप जलाओ

बुझते हृदयों में राग रंग के दीप जलाओ,
आशाओं की संध्या में तुम दीप जलाओ।

दीप जलाओ, मानव का अन्तः कहता है,
तिमिर क्षितिज पर देखो, दीया जलता है।

#HappyDiwali #HappyDiwali2020

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भोजन एक प्रतियोगिता

जीव जंतु के लिए एक आवश्यकता है,
परन्तु मानव के लिए भोजन एक प्रतियोगिता है।

हमारी भूख शारीरिक है, स्पष्ट है, सरल है,
मानव की बड़ी भूख उसका दिमाग है, उसका डर है।

वह घेरता है, बटोरता है, जी भर लूटता है,
और कहते नहीं हिचकता कि वह सामाजिक जंतु है।




Monday, November 9, 2020

स्तंभ

देखो कैसे स्तंभ खोखले हो जाते हैं !
कभी अंदर या फिर बाहर वाले खाते हैं।
या फिर खोखला होना अपरिहार्य है,
गुजरते समय का सांकेतिक पर्याय है।
अखंडता कोई हास नहीं, परिहास नहीं,
जहां कमजोर हुए टूटोगे, अविश्वास नहीं।



पल्लवन

पल्लवन यह प्रेम का।
पुष्प के सन्देश का,
सृष्टि के संकेत का।
उपवन सुबासित हो रहे,
मधुवन है यह हेमंत का।
पल्लवन यह प्रेम का।



मरकट

माँ !

मानव बड़ा थका हारा है,
भूख बड़ी उसकी कारा है।
जो भी मिले उसे कम होता
पेड़ काट धरती को रोता।
मरुभूमि न मरकट होंगे ,
जाने कब तक वृक्ष बचेंगे।



घोसला

इस घर में कभी एक घोसला था,
सुनता हूँ परदादा यहीं रहते थे।
बहुत सारे आदमी के बच्चे थे,
जो बड़े हो गए, कहीं खो गए थे।
अब यहां पंछी घोसला नहीं बनाते,
यहां अब पहले सी चहचहाहट नहीं।
कुल गिन कर तीन लोग रहते है,
मशीने आवाज़ करती है, बच्चे नहीं।



छोटी सी आशा

पतवार दो, नाव दो और नदी की धार दो।
बढ़ने दो, बहने दो, लहरों से कहने दो।
छोटे से दिल में है एक छोटी सी आशा,
उस किनारे के सूरज को मिल लूँ जरा सा।



क्या रहता, क्या खो जाता है?

सागर सदृश जीवन में उत्तुंग तरंगें स्मृतियों की जब कूल तोड़ कर बढ़ती हों कुछ बह जाता, कुछ रह जाता है। कितने मेरे थे, कितनों का मैं, पर काल बिंद...