Saturday, April 25, 2020

दान

कहते हैं :
कोई भी व्यक्ति आपके
पास तीन कारणों से आता है !
भाव से,अभाव से या प्रभाव से ।
किसी के अभाव को उजागर न होने दें। भगवान कृष्ण कहते थे कि दाएं हाथ से दान करे और बाएं हाथ को भी पता न चले।


पृथ्वी दिवस की शुभकामना।

पृथ्वी माँ है और हम सब उसकी संतान। धरती की गोद में लाखों मील भटका हूँ। पूरब से पश्चिम, उत्तर से दक्षिण। वरुण देवता के सीमाहीन साम्राज्य की सेवा में कई वर्ष बिताये हैं। प्रकृति के जल और थल तत्व को बहुत करीब से देखा है, अनुभूति की है। वायु के शक्ति की पराकाष्ठा के चक्रवातों को सागर के बीच में देखा है। पास में ही अग्नि तत्व को बिजली बन कर गिरते देखा है। आकाश के निर्वात में प्रकृति के तारामंडल को निहारते न जाने कितनी रातें बीती हैं।

यह पृथ्वी अद्भुत है, अतुल्य है, परिमेय होते हुए भी इसका वैराट्य रोमांचकारी है। पृथ्वी दिवस की शुभकामना।




विश्व पुस्तक दिवस की शुभकामना।

ये जो जिंदगी की किताब हैं, ये किताब भी क्या किताब हैं,
कही एक हसीन सा ख्वाब हैं, कही जानलेवा अज़ाब हैं।
कही आसुओं की हैं दास्तान, कही मुस्कुराहटों का बयां,
कही बरकतों की हैं बारिशें, कही तिश्नगी बेहिसाब है।
ये जो ज़िन्दगी की किताब है। - जगजीत सिंह जी की गायी प्रसिद्ध ग़ज़ल
स्कूल के दिनों में बहुत किताबें पढ़ी। पाठ्यक्रम से इतर संस्कृति, साहित्य, संघर्ष, दर्शन और जीवन पर लिखी किताबें बरबस उन्हें पढ़ने को बेबस करती थी। प्रेम चंद, शरत चंद्र, रेणु, अज्ञेय, जयशंकर प्रसाद, महादेवी, निराला, दिनकर और विवेकानंद - कमो बेस वैचारिक क्षितिज पर इन्ही कालजयी रचनाधर्मियों ने राज किया। पुस्तकालय से दो किताब लेने के लिए लाइब्रेरी वालंटियर जैसा काम भी करता था। एक मतवालापन था पढ़ जाने का। कुछ महान विभूतियों की जीवनी भी याद आती है - दुर्दम्य, सत्य के साथ मेरे प्रयोग, योगी कथामृत।
ऐसा लगता था हर किताब जीवन के किसी तिलिस्म से पार करने का रास्ता है। किताबों की दुनिया या यों कहिये दुनिया की किताबें। पाठ्यक्रम के मूल धन के अलावा यह सारी पुस्तकें ब्याज जैसी लगती थी। कुछ वर्षों तक यह क्रम काफी मनोयोग से चला। मेट्रिक की परीक्षा के बाद नियति ने घर से निर्वासित किया। अब समय था आजीविका उन्मुख प्रतिस्पर्धा में न चाहते हुए भी कूदने का। घबराते हुए छलांग लगाईं और समंदर की लहरों में तैरते जहाज पर जा पंहुचा।
बुद्धि, भावना और विचार के सतह पर जो ज़िन्दगी की किताब थी, वह अब सागर की विशालता में एक लौह पोत के दैनन्दिनता में परिणत हो गयी। कभी स्वप्न में नहीं सोचा था इतना लम्बा निर्वासन मिलेगा। किताबों का साथ छूट चला, या यूं कहें अब ज़िन्दगी ही किताब बन गयी। हर मिलता शख्स उस किताब का एक पन्ना और कुछ ऐसे भी जो किताब के अध्याय भी बनते चले गए।
समंदर के साहचर्य में दिन, सप्ताह, वर्ष बीतते चले गए। न जाने किताब कितनी समृद्ध हुई और न जाने कितने पन्ने अतीत के झरोखे में खो गए। मानव जीवन, भाव, प्रारब्ध, इच्छा शक्ति के कितने ही कथानक बनते बिगड़ते रहे। अच्छा - बुरा, प्रकाश - अन्धकार, सत्य - असत्य, जय - पराजय नित नए नए तरीके से अपनी परिभाषा बताते चले गए। मैं पढता रहा, बिना थके - बिना रुके। ज़िन्दगी की इस किताब को जितना पढता, आँखें उतना ही अंदर झांकती, कोई अस्वीकार्य सा सत्य उतना ही निकट आता और मुस्कुरा कर साथ बैठ जाता।
उसी भाग दौड़ में एक समय आया जब राम चरित मानस, उपनिषद् और भागवद गीता को बारम्बार पढ़ा। इन किताबों को पढ़ने के बाद ज़िन्दगी की किताब में और भी नया कलेवर जुड़ गया। दुनिया थोड़ी बहुत समझ आने लगी। अस्तित्व और तृष्णा, तृप्ति, जिज्ञासा के अनुभव थोड़े सरल होने लग गए। किताबें शायद अपने पाठक को सही समय पर दर्शन और दिशा देती चली जाती हैं।
कई सालों से अब ज़िन्दगी की किताब पढता हूँ, उसे ही पलटता हूँ, उसे ही गुनता हूँ, उसे ही समझता हूँ। इच्छा है कि प्रेरणा की कोई सहज धारा फिर अपने पाश में ले कर अध्ययन का कोई नया अध्याय आरम्भ कराये। आशा है कि ज़िन्दगी की किताब फिर कोई नयी दिशा दे, कोई नया हौसला दे, कोई नयी मंज़िल दे, कोई नया रास्ता दे। आपकी दृष्टि में कोई पठनीय पुस्तक हो तो नाम जरूर सुझाएं। संभव हो तो अपने पसंदीदा पुस्तकों के नाम बताएं। विश्व पुस्तक दिवस की शुभकामना।


आने वाली पीढ़ी के लिए

तुम !
राह बनाना,
स्वयं चलना, दूसरों को दिखाना।
वही जीता है,
जो शिला पर आलेख
रच जाता है, खैंच जाता है।
तुम स्वयं संघर्ष करना,
दुःख से, दैन्य से, अभाव से।
और हाँ, अगली पीढ़ी
के पग कालीन पर न हों,
पर काँटों पर भी नहीं हों।

--- आने वाली पीढ़ी के लिए ---


Saturday, April 4, 2020

दीप जलाना किधर मना है।

दीप जलाना किधर मना है।

माना यह बाधा बहुत बड़ी है,
उम्मीदों को चोट लगी है।
घबराहट की हवा चली है,
आंधी है, पतवार नहीं है।

दीप जलाना किधर मना है।

माना तम यह बहुत घना है,
माना भ्रम यह बहुत बड़ा है।
मायावी सा शत्रु खड़ा है ,
मानवता पर युद्ध छिड़ा है।

दीप जलाना किधर मना है।

आओ मिल कर दीप जलाएं,
हम प्रकाश का सम्बल पाएं।
ज्यादा तेरा और थोड़ा मेरा,
आओ भारत का नेह बढ़ाएं।

दीप जलाना किधर मना है।

दीप जलाना आत्म शक्ति का,
दीप जलाना राष्ट्र भक्ति का।
दीप यत्न का प्रखर जलाना ,
दीप देश का प्रखर जलाना।

दीप जलाना किधर मना है।

भारत माता की जय। 

क्या रहता, क्या खो जाता है?

सागर सदृश जीवन में उत्तुंग तरंगें स्मृतियों की जब कूल तोड़ कर बढ़ती हों कुछ बह जाता, कुछ रह जाता है। कितने मेरे थे, कितनों का मैं, पर काल बिंद...