हुंकार भरो , संधान करो,
दिवाकर नया उदित होता है।
मन की वीथि में फैला तम,
बीता हुआ वार होता हैं।
तंद्रा के झोंके न बुरे हैं,
पृष्ठभूमि वह चेतन के हैं।
सोवो जितनी नींद बची हो,
जागृति का आधार वही हैं।
बिन प्राप्ति न मोक्ष मिलेगा,
बिन रात्रि न सूर्य उगेगा ।
बैठो किंतु मन में प्रण भर,
एक नया आह्वान चलेगा ।
मन पे विजय प्रथम सोपान ,
फ़िर सारा संसार मिलेगा ।
उद्भिद बढ़ कर एक व्यक्ति का,
वसुधा का कुल मान बनेगा ।
These blogs r fondest of my words, closest to my bosom, deeply enriched with the outcomes of an introspective sojourn.... The panoramic view of sinusoidal life and its adornments ....
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क्या रहता, क्या खो जाता है?
सागर सदृश जीवन में उत्तुंग तरंगें स्मृतियों की जब कूल तोड़ कर बढ़ती हों कुछ बह जाता, कुछ रह जाता है। कितने मेरे थे, कितनों का मैं, पर काल बिंद...
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Bol Bam - A journey of faith and surrender. (Sultanganj to Deoghar)- Shravan , 2011 It was raining heavily in Kolkata. The streets were ...
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सागर सदृश जीवन में उत्तुंग तरंगें स्मृतियों की जब कूल तोड़ कर बढ़ती हों कुछ बह जाता, कुछ रह जाता है। कितने मेरे थे, कितनों का मैं, पर काल बिंद...
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चलो यह बस्ते, यह बोझ फेंकते हैं, दौड़ कर क्षितिज से कुछ पूछते हैं। आशा की तूलिका में रंग नए लपेटे, जीवन सूर्य को सुनहला कर देते हैं।
2 comments:
Kabira seep samudra ki
khara jal nahi le
Paani piye swati ka
Shobha sagar de...
seepi me moti base ,
saagar shobha hoye .
mannwa ram basaay ke,
sevak jag ko dhoye....
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