हुंकार भरो , संधान करो,
दिवाकर नया उदित होता है।
मन की वीथि में फैला तम,
बीता हुआ वार होता हैं।
तंद्रा के झोंके न बुरे हैं,
पृष्ठभूमि वह चेतन के हैं।
सोवो जितनी नींद बची हो,
जागृति का आधार वही हैं।
बिन प्राप्ति न मोक्ष मिलेगा,
बिन रात्रि न सूर्य उगेगा ।
बैठो किंतु मन में प्रण भर,
एक नया आह्वान चलेगा ।
मन पे विजय प्रथम सोपान ,
फ़िर सारा संसार मिलेगा ।
उद्भिद बढ़ कर एक व्यक्ति का,
वसुधा का कुल मान बनेगा ।
These blogs r fondest of my words, closest to my bosom, deeply enriched with the outcomes of an introspective sojourn.... The panoramic view of sinusoidal life and its adornments ....
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मेरी माँ
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2 comments:
Kabira seep samudra ki
khara jal nahi le
Paani piye swati ka
Shobha sagar de...
seepi me moti base ,
saagar shobha hoye .
mannwa ram basaay ke,
sevak jag ko dhoye....
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