आकंठ नीर में डूबा बचपन,
साँसों की हो गिनता कम्पन।
विलग हुए माँ के अंचल से,
करता हो जब शैशव क्रंदन।
करुण बहुत हैं कई पुकार,
जाने कौन सुने चीत्कार।
रौरव करती आतंक मचाती,
कोसी की ताण्डव सी धार।
कौन मसीहा जो सुन पाये,
माता कैसे ममत्व बचाए.
फैला सभी दिशा में निर्मम,
हाहाकार जो विप्लव कहलाये।
भूख सिमट आंखों में अब,
जाने कौन दृश्य दिखलाये।
दर्द लिपट कर बाहों से अब,
अस्सहाय सा भाव जगाये ।
चाह नही थी शीश महल की,
कुटिया में थे दीप जलाए ।
धरती में कुछ बीज उगा कर,
बरसों थे हम जीते आए।
प्रभु के अनंत कुबेर को
जाने यह आह्लाद नही भाया.
कोसी में जलमग्न करने को,
जाने कौन प्रलय आया.
है चीख रहा लुंठित शैशव,
बिखर रहा कुंठित यौवन .
कण कण से आता अब ,
मरघट सा काल मई क्रंदन .
नयन युगल अब नभ को देखे,
कहीं से कोई दो रोट गिराए ।
आदिकाल के मानव सा फ़िर ,
दौड़ दौड़ हम उसको खाए।
जनक सुता की यह धरती,
मिथिला का यह उर्वर गौरव।
आज काल के गाल में जाता,
सदियों का सारा कुल वैभव।
मन में अब फैला आकाश ,
तन सिंचित , कोसी की धार।
समय काल का लंबा रास्ता ,
धुंधली आंखों में अन्धकार .
धरती अपनी अब छोड़ चलेंगे ,
जाने कब तक शिविर मिलेंगे।
माटी के कितने ही लाल अब,
शरणार्थी बन कहीं जियेंगे ।
These blogs r fondest of my words, closest to my bosom, deeply enriched with the outcomes of an introspective sojourn.... The panoramic view of sinusoidal life and its adornments ....
Monday, September 1, 2008
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मेरी माँ
भोजन टेबल पर रखा जा चुका था। नजर उठा कर देखा तो माँ सामने खड़ी थी। सूती साड़ी में लिपटी वह सादगी की प्रतिमूर्ति , चेहरा सर्द बर्फ की तरह शां...

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My breath was uneven,dry throat,shivering hands,sagging morale and i was a living corpse or a dying man. Alone all alone in the vastness of ...
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जहां हृदय में धर्म निष्ठा है, वहां चरित्र में सुंदरता है। जब चरित्र में सुंदरता होती है, तो घर में सद्भाव रहता है। जब घर में सद्भाव होता है,...
4 comments:
really nice
hridaysparshi.......
युवा हो। क्या कविता कर रहे हो। जाओ वहाँ और उनके लिए कुछ करो। तुम्हें इतना तो सक्षम बनाया ही है।
Waah Kaviraaj, Koti Koti Pranaam
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